नई दिल्लीः राष्ट्रीय राजधानी के एक निजी अस्पताल में जन्मी एक अत्यंत प्रीमैच्योर बच्ची ने चिकित्सा जगत में जिजीविषा की मिसाल कायम की है। जन्म के समय यह बच्ची केवल 525 ग्राम की थी, जो सामान्य नवजात शिशु के मुकाबले बहुत कम वजन है। अब बच्ची स्वस्थ होकर 2.010 किग्रा वजन के साथ अस्पताल से छुट्टी पा गई है।
प्रीमैच्योर जन्म, एक बड़ी चुनौतीः पतपरगंज स्थित क्लाउडनाइन अस्पताल में वरिष्ठ नवजात विशेषज्ञ डॉ. जय किशोर और उनकी टीम ने इसे नवजात चिकित्सा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। बच्ची केवल 22 हफ्ते और 5 दिन की गर्भावस्था में जन्मी थी, जो प्रीवायबल (जीवित रहने की संभावना बेहद कम) अवस्था में आता है। इतने कम समय में जन्म लेने वाले बच्चों के बचने की संभावना बहुत कम होती है।
माता-पिता की लंबी यात्राः बच्ची के माता-पिता ने पहले भ्रूण प्रत्यारोपण (आईवीएफ) प्रयास में असफलता और गर्भपात का सामना किया था। इसके बाद डॉ. नेहा त्रिपाठी की देखरेख में उन्होंने फिर आईवीएफ से सफलता पाई। लेकिन जब केवल 22 हफ्ते में प्रीमैच्योर लेबर शुरू हुआ तो उनके लिए यह समय चिंता और डर का था।
105 दिन की गयी विशेष देखभालः मुश्किलों के बावजूद बच्ची का जन्म हुआ। डॉ. किशोर की टीम ने 105 दिन तक बच्ची की विशेष देखभाल की।
जन्म के समय की आपातकालीन कार्रवाईः बच्ची का जन्म कम समय में हुआ था, इसलिए वह बहुत कमजोर थी और अपने दम पर सांस नहीं ले पा रही थी। ऐसे में डॉक्टरों ने तुरंत कुछ जरूरी कदम उठाए जिनमें इंट्यूबेशन, रेससिटेशन शामिल है। बच्ची बहुत कमजोर थी, इसलिए डॉक्टरों ने उसे ऑक्सीजन, गर्माहट और हृदय की मालिश जैसी मदद दी।
नवजात गहन देखभाल कक्ष में निरंतर देखभालः इसके बाद बच्ची को 105 दिनों तक एनआईसीयू में रखा गया, जहाँ उसकी हर पल निगरानी की गई। बच्ची के फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं थे, इसलिए वेंटिलेटर से सांस दी गई। सर्फैक्टेंट नाम की दवा दी गई, जो फेफड़ों को खुला रखने में मदद करती है ताकि बच्ची आराम से सांस ले सके। जन्म के बाद बच्ची कुछ भी पी या खा नहीं सकती थी, इसलिए उसे नसों के ज़रिए विटामिन, प्रोटीन, ग्लूकोज आदि दिया गया। तीसरे दिन से बच्ची को बहुत थोड़ी मात्रा में माँ का दूध दिया गया।
वेंटिलेशन से छुटकारा: 10वें दिन तक बच्ची को मशीन से सांस लेने में मदद की गई। फिर उसे धीरे-धीरे बिना मशीन के सांस लेने की ट्रेनिंग दी गई। जब बच्ची थोड़ी मजबूत हुई, तब उसे ऑक्सीजन की मदद दी गई ताकि उसके फेफड़े खुद से काम करना सीखें। इसके बाद उसे सामान्य हवा में शिफ्ट कर दिया गया।
पूरे इलाज के दौरान सावधानियांः कभी भी फॉर्मूला दूध का इस्तेमाल नहीं हुआ। बच्ची को कंगारू मदर केयर दी गई, यानी माँ ने उसे अपने सीने से लगाकर रखा ताकि उसे गर्माहट, प्यार और सुरक्षा महसूस हो। अस्पताल से छुट्टी से पहले किए गए सभी परीक्षण जैसे क्रेनियल अल्ट्रासाउंड सामान्य पाए गए। बच्ची की आंखों में होने वाले संक्रमण का लेज़र इलाज भी सफल रहा।