मृत्युदंड के पुनर्विचार के अवसर पर शीर्ष न्यायालय ने लगाई मुहर

2014 में शत्रुघ्न चौहान बनाम भारत सरकार मामले के फैसले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम के नेतृत्व वाली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने मृत्युदंड की घोषणा के बाद राज्यपाल-राष्ट्रपति के पास अनंतकाल तक जीवनदान की अर्जी पड़े रहने या अन्य कारणों से लंबे समय तक उस दंड का अमल न होने की स्थिति में 14 लोगों की फांसी रद्द कर दी थी।

By देवार्घ्य भट्टाचार्य, Posted by डॉ.अभिज्ञात

Oct 10, 2025 12:54 IST

नयी दिल्लीःभारत सरकार की अपराध के शिकार पीड़ित व्यक्तिकी मानसिक पीड़ा को ध्यान में रखकर अपराध के दोष में मृत्युदंड प्राप्त लोगों की फांसी को अमल में लाने के मामले में नियम-कानून को और भी कड़ा करने की अपील शीर्ष न्यायालय में फिर खारिज हो गयी है।

मालूम हो कि 2014 में शत्रुघ्न चौहान बनाम भारत सरकार मामले के फैसले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम के नेतृत्व वाली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने मृत्युदंड की घोषणा के बाद राज्यपाल-राष्ट्रपति के पास अनंतकाल तक जीवनदान की अर्जी पड़े रहने या अन्य कारणों से लंबे समय तक उस दंड का अमल न होने की स्थिति में 14 लोगों की फांसी रद्द कर दी थी। शीर्ष न्यायालय ने सजा प्राप्त व्यक्ति की मानसिक पीड़ा का उल्लेख करते हुए मृत्युदंड जैसी कठोर सजा के मामले में कई सावधानियां अपनाने के दिशा-निर्देश भी दिये थे।

सत्र न्यायालय की मृत्युदंड की घोषणा, उसके बाद हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में उस दंड पर मुहर लगने के बाद भी सजा प्राप्त व्यक्ति के पास राज्यपाल, राष्ट्रपति के पास जीवनदान का अवसर रहता है। राष्ट्रपति उस अर्जी को खारिज कर दें तो उस फैसले की पुनर्समीक्षा के लिए शीर्ष न्यायालय में आवेदन दिया जा सकता है। इन विभिन्न चरणों में, विशेषकर राज्यपाल-राष्ट्रपति की ओर से जीवनदान के आवेदन पर निर्णय में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने असंतोष जताया था। तीन न्यायाधीशों की बेंच ने कहा था कि जीवनदान के आवेदन पर कम समय में निर्णय लेना आवश्यक है क्योंकि जिसके सिर पर मृत्यु की तलवार लटक रही हो, उसे लम्बे समय तक प्रतीक्षा करवाना अतिरिक्त दंड और मानसिक उत्पीड़न के समान है।

सुप्रीम कोर्ट ने जीवनदान की अर्जी खारिज होने के बाद न्यायिक समीक्षा और सजा प्राप्त व्यक्ति की मानसिक तैयारी के लिए कम से कम 14 दिन का समय आवंटित करने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा था कि अंतिम चरण के इन 14 दिनों में ही केवल 'एकांत कारावास' आवंटित हो सकता है, उससे पहले नहीं। भारत सरकार ने न्यायिक समीक्षा की 14 दिन की समय-सीमा घटाकर 7 दिन करने और जीवनदान की अर्जी, समीक्षा याचिका दायर करने के मामले में समय कम करने की अर्जी की थी।

शीर्ष न्यायालय ने पहले भी कई बार उस अर्जी पर ध्यान नहीं दिया था। बुधवार को न्यायाधीश विक्रम नाथ, न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायाधीश एनवी आंजारिया की बेंच ने सरकार की अर्जी खारिज करके 2024 के फैसले को ही बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने फिर याद दिलाया कि सजा प्राप्त कैदियों का भी मानवीय गौरव है।

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