मोदी की डिग्री का मामला: हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय से मांगा जवाब

कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) को इस देरी पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी 2026 को तय की।

By डॉ. अभिज्ञात

Nov 12, 2025 18:23 IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री सार्वजनिक करने की मांग वाली याचिका में अपील दायर करने में हुई देरी पर चिंता जताई। अदालत ने कहा कि एकल पीठ के फैसले के खिलाफ दायर अपीलें समयसीमा से बाहर की गई हैं। कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) को इस देरी पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी 2026 को तय की।

डीयू को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देशः मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला के पीठ ने दिल्ली विश्वविद्यालय को अपीलों पर आपत्तियां दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया। ये अपीलें उस आदेश के खिलाफ दायर की गई हैं, जिसमें मोदी की स्नातक डिग्री से संबंधित जानकारी के खुलासे को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश को निरस्त किया गया था। पीठ को बताया गया कि अगस्त 2025 में एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करने में विलंब हुआ था।

चार अपीलें दायरः इस मामले में अपीलें सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता नीरज, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह और अधिवक्ता मोहम्मद इरशाद ने दाखिल की हैं। इन अपीलों में सीआईसी के उस पुराने आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की बीए डिग्री के विवरण को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था।

एकल न्यायाधीश का फैसला: 25 अगस्त को एकल न्यायाधीश ने सीआईसी के आदेश को निरस्त करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री सार्वजनिक पद पर हैं, इसका यह अर्थ नहीं कि उनकी सारी व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक की जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि मांगी गई जानकारी में कोई अंतर्निहित जनहित नहीं है और आरटीआई कानून का उद्देश्य सरकारी कार्यों में पारदर्शिता लाना है, ना कि सनसनी फैलाना।

सीआईसी का पुराना आदेश और विश्वविद्यालय की स्थितिः आरटीआई कार्यकर्ता नीरज की एक याचिका पर, 21 दिसम्बर 2016 को सीआईसी ने 1978 की बीए परीक्षा पास करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी थी। वह वर्ष जब प्रधानमंत्री मोदी ने भी परीक्षा उत्तीर्ण की थी। दिल्ली विश्वविद्यालय ने सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि वह अदालत को अपने रिकॉर्ड दिखाने को तैयार है, पर जानकारी सार्वजनिक करने के निर्देश को रद्द किया जाए। न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि शैक्षणिक योग्यता किसी सार्वजनिक पद के लिए वैधानिक अनिवार्यता नहीं है, इसलिए इसे सार्वजनिक हित का मामला नहीं माना जा सकता। उन्होंने सीआईसी के दृष्टिकोण को पूरी तरह गलतफहमी पर आधारित बताया।

स्मृति ईरानी मामले का हवालाः दिल्ली हाईकोर्ट पहले भी एक अन्य मामले में सीआईसी के उस आदेश को निरस्त कर चुकी है, जिसमें सीबीएसई को पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के कक्षा 10 और 12 के रिकॉर्ड की प्रतियाँ देने का निर्देश दिया गया था।

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