नयी दिल्लीः हाल ही में 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को बरी कर दिया गया था। भारतीय सेना ने उसके कुछ हफ्तों बाद ही उन्हें कर्नल पद पर पदोन्नत करके पुरस्कृत किया। गुरुवार को उनकी पत्नी अपर्णा पुरोहित ने यह खबर दी।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि आरडीएक्स लाने या बम बनाने में पुरोहित की कथित भूमिका साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है। इसने यह भी टिप्पणी की है कि 'केवल संदेह वास्तविक सबूत का स्थान नहीं ले सकता'। अदालत ने जांच में खामियों की आलोचना भी की है।
2008 में प्रसाद पुरोहित को गिरफ्तार किया गया था। जमानत मिलने से पहले वे लगभग नौ साल जेल में रहे। उनका दावा था कि एक सैन्य खुफिया अधिकारी के रूप में अपनी जिम्मेदारी के हिस्से के रूप में ही उन्होंने 'अभिनव भारत' जैसे संगठनों में 'घुसपैठ' की थी। ऐसा आरोप था कि इसी संगठन के सदस्यों ने महाराष्ट्र के मालेगांव में उस विस्फोट को अंजाम दिया था। हालांकि अदालत ने कहा है कि प्रसाद पुरोहित उस दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं दे पाए।
लेकिन प्रसाद पुरोहित और छह अन्य लोगों को अंततः सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि RDX लाने या बम बनाने में प्रसाद पुरोहित की कोई भूमिका थी, इसका कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है। NIA की जांच की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा था कि संदेह को सबूत के रूप में पेश नहीं किया जा सकता।
बरी होने के बाद प्रसाद पुरोहित ने कहा था, 'मैं एक सैनिक हूं। मैं इस देश से बेशर्त प्यार करता हूं। मैं मानसिक रूप से बीमार कुछ लोगों का शिकार हुआ हूं। कुछ लोगों ने सत्ता का दुरुपयोग किया है, और हमें यह सहना पड़ा है।'
मालेगांव मामले में ही पहली बार कट्टर दक्षिणपंथियों को आतंकवादी हमला करने के लिए आरोपित किया गया था। 15 साल से भी अधिक समय तक मुकदमा चलने के बाद विशेष NIA अदालत ने प्रसाद पुरोहित और छह अन्य अभियुक्तों को रिहा कर दिया और उसके बाद ही उन्हें पदोन्नति मिली।
हालांकि कानून के हाथ से अभी वे पूरी तरह से मुक्त नहीं हुए हैं। हताहतों के रिश्तेदारों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में NIA अदालत के फैसले को चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह ही प्रसाद पुरोहित सहित मामले के सभी अभियुक्तों और जांच एजेंसी के रूप में NIA को नोटिस भेजा है।