नयी दिल्लीः आईसीयू की संरचना में कई अस्पतालों के बीच समन्वय की कमी के कारण चिकित्सा में लापरवाही का एक आरोप लगा था। इसके बाद कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय को आईसीयू के लिए केंद्रीय दिशा-निर्देश तैयार करने का आदेश दिया था। सभी राज्यों को इसे अपनाने को भी कहा गया। मंत्रालय ने दिशानिर्देश तैयार किए, लेकिन इसके पालन के बारे में अधिकांश राज्यों के स्वास्थ्य विभागों ने कोई हलफनामा नहीं दिया। इस स्थिति से नाराज सर्वोच्च न्यायालय ने आगामी 20 नवंबर की सुनवाई में सभी राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों को तलब किया है।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार 2023 में आईसीयू और सीसीयू में उपचाराधीन रोगियों के लिए दिशानिर्देश केंद्र द्वारा तैयार किए गए। इस वर्ष 30 सितंबर तक दिशानिर्देश कार्यान्वित करने और 5 अक्टूबर को इस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया था। लेकिन पाया गया कि 29 में से केवल आठ राज्य ही दिशानिर्देश कार्यान्वित कर पाए हैं। इससे अदालत नाराज़ है।
न्यायाधीश एहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायाधीश एन कोटिश्वर सिंह की बेंच का निर्देश दिया है कि नवंबर की सुनवाई में बाकी 21 राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों को उपस्थित होकर यह बताना होगा कि अदालत उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई क्यों न करे। इस निर्देश के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि सचिव किसी भी हाल में हाजिरी से बच नहीं सकते। जानकारी मिली है कि कई राज्य गाइडलाइनों के कार्यान्वयन और अस्पतालों की तैयारियों के लिए चरणबद्ध तरीके से काम कर रहे हैं, जिनमें पश्चिम बंगाल भी शामिल है। इस राज्य में कार्य काफी हद तक आगे बढ़ चुका है।
गाइडलाइन में क्या है?
स्वास्थ्य भवन सूत्रों के अनुसार, किसे आईसीयू में भर्ती करना है और किसे नहीं, कब 'स्टेप डाउन' करके स्थानांतरित या डिस्चार्ज करना है, रोगी की शारीरिक स्थिति, श्वसन सहायता की आवश्यकता है या नहीं, अंग विफल हो रहे हैं या नहीं आदि बातों पर ध्यान देते हुए किन मानकों पर जोर देना चाहिए, यह गाइडलाइन के प्राथमिक विषय हैं। आईसीयू में न्यूनतम बिस्तरों की संख्या, निगरानी व्यवस्था, जीवनरक्षक और सामान्य उपकरणों की गुणवत्ता और संख्या, क्षेत्र का विन्यास, आईसीयू या सीसीयू ब्लॉक डिज़ाइन, उसके पैनल समेत समग्र योजना की बातें भी इसमें शामिल हैं।