बेंगलुरुः इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हुए हैं। इसी दौरान यह सवाल उठने लगा कि आरएसएस कोई पंजीकृत संगठन क्यों नहीं है। इस पर अब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस संदर्भ में हिन्दू धर्म का उदाहरण देते हुए कहा कि हिन्दू धर्म भी तो ‘पंजीकृत’ नहीं है।
आरएसएस के सौ वर्ष पूरे होने के बावजूद, कानूनी रूप से यह संगठन पंजीकृत क्यों नहीं है इस पर सवाल उठ रहे हैं। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, मोहन भागवत ने कहा कि बहुत सी चीजें ‘पंजीकृत’ नहीं हैं। यहाँ तक कि हिन्दू धर्म भी ‘पंजीकृत’ नहीं है। हालाँकि किसी पंजीकृत संगठन न होने के बावजूद आरएसएस को टैक्स में छूट का लाभ मिलता है। यह सुविधा अदालतों और आयकर विभाग के आदेशों के तहत दी जाती है। भागवत ने कहा कि आरएसएस कोई संगठन नहीं है, बल्कि यह विभिन्न व्यक्तियों का समूह है।
रविवार को मोहन भागवत ने कहा कि 1925 में जब आरएसएस की स्थापना हुई, तब देश में ब्रिटिश शासन था। क्या हम खुद को ब्रिटिश सरकार के अधीन पंजीकृत कराते? उन्होंने आगे कहा कि 1947 में देश की आज़ादी के बाद से अब तक किसी भी सरकार ने आरएसएस का पंजीकरण अनिवार्य नहीं किया है।
उल्लेखनीय है कि शनिवार से बेंगलुरु में आरएसएस के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में दो दिवसीय विशेष कार्यक्रम शुरू हुआ है। वहीं, इस कार्यक्रम में मोहन भागवत की एक टिप्पणी को लेकर विवाद शुरू हो गया है। कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भारत में कोई भी व्यक्ति ‘अहिन्दू’ नहीं है। अपने इस कथन के समर्थन में उन्होंने तर्क दिया कि धर्म चाहे जो भी हो, प्रत्येक भारतीय नागरिक के पूर्वज एक ही हैं। सभी एक समान हिन्दू सभ्यता में निहित सांस्कृतिक आधार को साझा करते हैं। उनका कहना था कि मुस्लिम और ईसाई समुदायों को यह सच्चाई भुलाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।