शिमलाः प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से पिछले चार-पांच वर्षों में हिमाचल प्रदेश का अनुमानित 46,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। नुकसान की मात्रा उस राज्य की कुल जीडीपी के वार्षिक लगभग 4 प्रतिशत के बराबर है। सोमवार को प्रकाशित हिमाचल की ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट (एचपीएचडीआर) 2025 में ऐसी चिंताजनक जानकारी सामने आई है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मौसम में बदलाव, बार-बार भूस्खलन, बाढ़ वहां के विकास में बाधा बन गए हैं। हिमाचल सरकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की संयुक्त पहल से यह रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में मुख्यतः हिमाचल की अर्थव्यवस्था, जनस्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को उजागर किया गया है। एचपीएचडीआर रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन ने केवल आर्थिक नुकसान ही नहीं किया है, इसने हिमाचल की स्वास्थ्य व्यवस्था को भी बदल दिया है। इसके परिणामस्वरूप डेंगू, डायरिया और टाइफाइड सहित कई बीमारियों का संक्रमण बढ़ गया है। इसके अलावा वन्यजीवों और वनभूमि का भी व्यापक नुकसान हुआ है।
हिमाचल में लगातार प्राकृतिक आपदाओं के कारण ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स भी गिर गया है। सबसे खराब स्थिति किन्नौर, लाहुल व स्पीति, और चंबा जिले की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि किसान, महिलाएं, आदिवासी समुदाय, बच्चे, सामाजिक रूप से पिछड़े लोग और बुजुर्ग नागरिक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से सबसे अधिक प्रभावित हैं। हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुख्खू ने बताया है कि 'जलवायु प्रतिरोधी हिमाचल' बनाने के लक्ष्य पर पहले से ही जोर दिया जा रहा है। यूएनडीपी इंडिया के सीनियर इकोनॉमिस्ट अमि मिश्रा कहते हैं, 'रिपोर्ट तैयार करने के लिए विभिन्न विभागों और यूएनडीपी के विशेषज्ञों की एक टीम ने हिमाचल के 10 जिलों का दौरा किया। रिपोर्ट में इतनी चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि अब जलवायु और आपदाओं का मुकाबला ही हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी चुनौती है।'
यूएनडीपी इंडिया की रेसिडेंट रिप्रेजेंटेटिव एंजेला लुसिगी कहती हैं, 'हिमाचल प्रदेश भारत का पहला राज्य है, जिसने जलवायु परिवर्तन और राज्य की अर्थव्यवस्था, लोगों की आजीविका और प्राकृतिक संसाधनों पर विचार करके मानव विकास रिपोर्ट तैयार करने की पहल की है।'