ई-गवर्नेंस में भी बालिकाओं की सुरक्षा ही मुख्य है, ऐसा मानते हैं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा छोटी लड़कियों के सामने अब जो खतरे हैं वे केवल उनके चलने के रास्ते में ही नहीं हैं, बल्कि व्यापक डिजिटल दुनिया में भी फैले हुए हैं, जिस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है।

By अन्वेषा बंद्योपाध्याय, Posted by डॉ.अभिज्ञात

Oct 12, 2025 14:12 IST

नयी दिल्लीः तकनीक तेजी से आगे बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई का मानना है कि यह सुविधा के साथ-साथ जोखिम और असुरक्षा भी बढ़ा रही है, विशेषकर बालिकाओं के लिए। उनके अनुसार, 'छोटी लड़कियों के सामने अब जो खतरे हैं वे केवल उनके चलने के रास्ते में ही नहीं हैं, बल्कि व्यापक डिजिटल दुनिया में भी फैले हुए हैं, जिस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है।

इसलिए वे लगातार साइबर बुलिंग, ऑनलाइन हैरासमेंट, डिजिटल स्टॉकिंग, व्यक्तिगत जानकारी के दुरुपयोग और डीप फेक के माध्यम से बनाई गई काल्पनिक तस्वीरों का शिकार हो रही हैं। उन्हें इससे बचाना भी ई-गवर्नेंस की एक बड़ी जिम्मेदारी है। यह हमारी मुख्य जिम्मेदारी और कर्तव्य में आता है। उन्होंने सभी से आह्वान किया कि 'हमें अपने समय की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए जो कानून ऑनलाइन यौन उत्पीड़न, डिजिटल ट्रैफिकिंग और साइबर हैरासमेंट के मामले में लागू होते हैं, उनका उचित उपयोग करना होगा। इस संबंध में शिक्षा और जागरूकता फैलानी होगी।' तकनीक का विकास मुक्ति का साधन बने, उत्पीड़न का नही।'

शनिवार को 'अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस' था। इस अवसर पर इस दिन यूनिसेफ (UNICEF) के साथ संयुक्त पहल से सुप्रीम कोर्ट ने 'बालिकाओं को कैसे सुरक्षित' रखा जा सकता है, इस पर एक चर्चा का आयोजन किया था। वहीं मुख्य न्यायाधीश ने यह बात कही। हालांकि बालिकाओं की रक्षा पर नहीं, बल्कि इस पर जोर दिया कि उनके लिए ऐसा माहौल बनाना होगा जो उनकी गरिमा, राय और सपनों के साथ सुरक्षित रूप से जी सकें।

उनका मानना है कि संविधान और कानून होने के बावजूद देश की कई लड़कियां अभी भी मौलिक अधिकार और न्यूनतम आवश्यकताओं से भी वंचित हैं। यह अभाव उन्हें यौन हिंसा, शोषण, जननांग विकृति, कुपोषण, गर्भपात, तस्करी और बाल विवाह जैसे विभिन्न खतरों के मुंह में धकेल देता है। इसलिए समाज में आर्थिक, सामाजिक या रूढ़िवादी, जो भी बाधाएं इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं, उनका गहराई से विश्लेषण की आवश्यकता है। उनके अनुसार, 'यदि कोई लड़की अंत्यज वर्ग की है या उसकी कोई अक्षमता है तो वह दोगुना या तिगुना अधिक भेदभाव का शिकार होती है। इसलिए हमारी संस्थाओं, नीतियों और प्रशासन को इस वास्तविकता को समझकर काम करना होगा। पुलिस के प्रशिक्षण, शिक्षक-स्वास्थ्यकर्मियों की शिक्षा और स्थानीय प्रशासन के व्यवहार में सहानुभूति और समझ होनी चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब हम कहते हैं कि बच्चों को विशेषकर लड़कियों को सुरक्षित रखा गया है, तो इसका मतलब क्या है? यदि सम्मान नहीं दिया जाता, बात करने का अवसर नहीं मिलता, या उनके सपने परिस्थितियों के कारण रुक जाते हैं, तो क्या उसे वास्तव में सुरक्षा कहा जा सकता है? उन्हें कहा कि संविधान सभा ने शुरू से ही स्वीकार किया था कि बच्चों के लिए शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है। संविधान की प्रस्तावना में जो न्याय, समानता और भाईचारे की प्रतिज्ञा और 14, 15(3), 19 और 21 नंबर अनुच्छेद में मौलिक अधिकारों की बात कही गई है, वहां भी बालिकाओं की रक्षा करना और उन्हें अपने तरीके से स्वस्थ रूप से सुरक्षित बड़ा होने देने की बात कही गई है।

सीजेआई ने कुछ व्यावहारिक समस्याओं की बात भी उठाई और अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, 'अक्सर आम लोग भी किसी उत्पीड़ित, तस्करी का शिकार या परित्यक्त लड़की को देखकर क्या करना चाहिए, यह नहीं जानते। इसके कारण सहायता की प्रक्रिया में देरी होती है। इसलिए बच्चों, विशेषकर बालिकाओं की सुरक्षा और पुनर्वास संबंधी सरकारी योजना और सुविधाओं के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।'


उन्होंने आह्वान किया कि बाल उत्पीड़न, भिक्षावृत्ति, यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ लड़ने के लिए गांव, स्कूल, पंचायत-सभी जगह जागरूकता बढ़ानी होगी। यह काम केवल राजधानी में सीमित रहने से नहीं चलेगा। देश के हर कोने तक पहुंचना होगा।

इस चर्चा में PCPNDT कानून (भ्रूण के लिंग निर्धारण रोकथाम), शिक्षा, बाल श्रम, POCSO कानून, बाल विवाह और बालिकाओं संबंधी विभिन्न कानूनों के व्यावहारिक प्रयोग पर चर्चा हुई। उन्होंने कहा, 'यह वास्तव में सभी बच्चों के अधिकारों पर एक व्यापक चर्चा है।' उन्होंने महिला एवं बाल कल्याण मंत्री अन्नपूर्णा देवी की उपस्थिति के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, 'बालिकाओं के अधिकार प्रभावी करने की जिम्मेदारी पहले सरकार के हाथ में है। अदालत कानून की रक्षा कर सकती है, लेकिन कार्यान्वयन की जिम्मेदारी मुख्यतः प्रशासन की ही है।'

अंत में उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर की 'चित्त येथा भयशून्य' कविता का उद्धरण देते हुए कहा कि टैगोर ने ऐसे देश का सपना देखा था जहां सिर ऊंचा करके जिया जा सके, ज्ञान सबके लिए खुला रहे। वह सपना तभी पूरा होगा, जब देश की प्रत्येक बालिका को डर और भेदभाव रहित जीवन का आश्वासन मिलेगा। उसे सुरक्षा देने का मतलब केवल शरीर बचाना नहीं है—उसके सपने, उसके मन, उसकी आत्मा को मुक्त करना है।

उन्होंने आगे कहा कि जब हर लड़की सम्मान के साथ सिर ऊंचा करके खड़ी हो सकेगी, शिक्षा और समानता के प्रकाश में उसके सपने बड़े हो सकेंगे, तभी हम कह सकेंगे—टैगोर की उस स्वतंत्रता का प्रभात आ गया है। अंत में उन्होंने बताया कि यह दिन अंतररराष्ट्रीय बालिका दिवस भी है। इस साल का मुख्य संदेश—उज्ज्वल भविष्य के लिए बालिकाओं का सशक्तीकरण है।

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