नयी दिल्लीः हिमाचल प्रदेश के 'कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व' को यूनेस्को के 'वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व्स' (WNBR) में शामिल किया गया है। त्योहार के मौसम में भारत के मुकुट में एक नया पंख जुड़ा है। शनिवार को यूनेस्को की ओर से X हैंडल पर पोस्ट करके इस अंतरराष्ट्रीय मान्यता की घोषणा की गई है। इसके फलस्वरूप हिमाचल के लाहौल-स्पीति जिले में फैले 7,770 वर्ग किलोमीटर के शीत क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय संरक्षण मानचित्र में स्थान मिला। इस नई मान्यता के बाद भारत में यूनेस्को के WNBR सूची में संरक्षित स्थानों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है।
यूनेस्को ने एक बयान में कहा, 'दुनिया के 21 देशों के 26 नए बायोस्फीयर रिजर्व को नामित किया गया है, जो पिछले 20 वर्षों में सबसे अधिक है। वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व में शामिल स्थानों की संख्या अब कुल 785 हो गई है, जो 142 देशों में फैली हुई है। इसके परिणामस्वरूप 2018 से लगभग 10 लाख वर्ग किलोमीटर प्राकृतिक क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में आ गया है, जो बोलीविया के क्षेत्रफल के लगभग बराबर है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने X हैंडल पर इस संबंध में एक पोस्ट किया है। पोस्ट में उन्होंने बताया कि पेरिस में यूनेस्को की 'मैन एंड द बायोस्फीयर' (MAB) अंतरराष्ट्रीय परिषद का 37वां अधिवेशन आयोजित हुआ है। वहीं भारत के इस रिजर्व को विरासत में शामिल करने का निर्णय लिया गया।
हिमाचल के ट्रांस-हिमालय क्षेत्र में फैला यह रिजर्व स्पीति और लाहौल वन विभाग के आसपास के क्षेत्र में है, जिसमें बारालाचा दर्रा, भरतपुर और सरचू शामिल हैं। रिजर्व की ऊंचाई लगभग 3,300 मीटर से 6,600 मीटर तक है। इसमें पिन वैली नेशनल पार्क, किब्बर वन्यजीव अभयारण्य, चंद्रताल आर्द्रभूमि और सरचू को यूनेस्को में शामिल किया गया है।
ट्रांस-हिमालय के 0इस संरक्षित क्षेत्र में कई प्रकार के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। इसके अलावा, यहां कई स्तनधारी जानवर और लगभग 119 प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते हैं। उनमें से उल्लेखनीय हैं स्नो लेपर्ड, साइबेरियन आइबेक्स, नीली भेड़ और हिमालयी भेड़िया। इस क्षेत्र के निवासी मुख्य रूप से पशुपालन और कृषि कार्य के माध्यम से अपनी आजीविका चलाते हैं।