नई दिल्ली: कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि सरकार का यह फैसला अरावली पहाड़ियों के लिए 'मौत का वारंट' है। 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की दी हुई नई परिभाषा को मंजूरी दी। इसके अनुसार, 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली अरावली की पहाड़ियों पर खनन से जुड़े कड़े नियम लागू नहीं होंगे।
कांग्रेस ने सोनिया गांधी के एक लेख का हिस्सा साझा किया। इसमें उन्होंने लिखा कि गुजरात से राजस्थान और फिर हरियाणा तक फैली अरावली भारत के भूगोल और इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन अवैध खनन से पहले ही कमजोर हो चुकी इन पहाड़ियों के लिए सरकार का यह फैसला बेहद नुकसानदायक होगा। सरकार की नई नीति से 90% अरावली क्षेत्र, जो 100 मीटर से कम ऊँचाई का है, खनन के लिए खुल जाएगा। इससे माफिया और अवैध खनन करने वालों को सीधी छूट मिल जाएगी। सोनिया के अनुसार, यह सरकार की पर्यावरण को लगातार अनदेखा करने की एक और मिसाल है।
सोनिया गांधी ने वनों की कटाई और जंगलों से स्थानीय लोगों को हटाए जाने को भी गलत बताया। उन्होंने कहा कि यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की भावना के खिलाफ है। उन्होंने केंद्र से अपील की कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और वन संरक्षण नियम, 2022 में किए गए बदलाव वापस लिए जाएं।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी देते हुए आदेश दिया था। अदालत ने अरावली क्षेत्र में सतत खनन के लिए दी गई सिफारिशों को भी मान लिया। अदालत ने मंत्रालय को कहा कि वह एक सतत खनन प्रबंधन योजना बनाए। इस योजना में यह तय होगा कि कहां खनन की अनुमति होगी, कौन-से क्षेत्र पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील हैं, कहां खनन बिल्कुल नहीं होना चाहिए और खनन के बाद जमीन को कैसे बहाल किया जाएगा। अदालत ने यह भी साफ किया कि जब तक यह खनन प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती, तब तक नए खनन पट्टों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।