अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गिरी भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग, कौन से स्थान पर खिसका भारत?

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि अर्थव्यवस्था के मामले में भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश है। फिर भी अपेक्षाकृत छोटी अर्थव्यवस्था वाले देश हेनली पासपोर्ट इंडेक्स में भारत से आगे हैं।

By अयंतिका साहा, Posted By : मौमिता भट्टाचार्य

Nov 01, 2025 14:25 IST

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग गिरी है। हाल ही में हेनली पासपोर्ट इंडेक्स की नई रैंकिंग में यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। इंडेक्स के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग इस साल पांच स्थान नीचे लुढ़क गई है। पिछले साल भारतीय पासपोर्ट की रैंकिंग 80 थी, जबकि इस साल 199 देशों की लिस्ट में भारत का स्थान 85वां है।

कुछ दिन पहले एक भारतीय ट्रैवल इन्फ्लुएंसर का वीडियो वायरल हुआ था। वीडियो में इन्फ्लुएंसर ने शिकायत जतायी थी कि भूटान या श्रीलंका जैसे पड़ोसी देश भारतीयों का स्वागत करते हैं। लेकिन यूरोप जैसे पश्चिमी देशों का वीजा पाना भारतीयों के लिए काफी कठिन हो गया है।

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि अर्थव्यवस्था के मामले में भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश है। फिर भी रवांडा (78वां), घाना (74वां) और अजरबैजान (72वां) जैसी अपेक्षाकृत छोटी अर्थव्यवस्था वाले देश हेनली पासपोर्ट इंडेक्स में भारत से आगे हैं। पिछले एक दशक में भारत की रैंक आमतौर पर 80 के आसपास ही रही है। 2021 में भारत 90वें स्थान पर भी पहुंच गया था।

दूसरी ओर एशिया में सिंगापुर (193 देशों में वीजा-मुक्त प्रवेश), दक्षिण कोरिया (190 देशों में वीजा-मुक्त प्रवेश) और जापान (189 देशों में वीजा-मुक्त प्रवेश) लगातार शीर्ष स्थान पर बने हुए हैं। लेकिन भारतीय पासपोर्ट धारकों को वर्तमान में 57 देशों में वीजा-मुक्त प्रवेश मिलता है, जो अफ्रीका महाद्वीप के मॉरिटानिया के बराबर है।

पासपोर्ट देश के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और नागरिकों के व्यापार व शिक्षा के अवसर प्रदान करता है। यानी पासपोर्ट कमजोर होने पर वीजा बनाने की लागत, यात्रा के अवसर, अतिरिक्त कागजात जमा करना और प्रतीक्षा का समय बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत धीरे-धीरे उसी दिशा में बढ़ रहा है।

हालांकि हेनली पासपोर्ट इंडेक्स में भारत की रैंक घटी है, लेकिन भारतीयों को वीजा-मुक्त प्रवेश की सुविधा देने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 2015 में 52 देशों के मामले में यह सुविधा भारतीयों को मिलती थी। 2025 में यह बढ़कर 57 हो गई है। लेकिन फिर भी भारतीय पासपोर्ट की रैंक 85 है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसका मुख्य कारण विश्वव्यापी बढ़ती प्रतिस्पर्धा है। हेनली एंड पार्टनर्स की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में वीजा-मुक्त यात्रा के औसत अवसर लगभग दोगुने हो गए हैं। जैसे पिछले एक दशक में चीन ने अपने वीजा-मुक्त गंतव्यों की संख्या 50 से बढ़ाकर 82 की है जिससे उनकी रैंक 94 से 60 पर पहुंच गयी है। दूसरी ओर भारत इस साल जुलाई में 59 देशों में वीजा-मुक्त प्रवेश के साथ 77वें स्थान पर था। लेकिन अक्टूबर में दो देशों के प्रवेश अधिकार खोने के कारण 85वें स्थान पर खिसक गया।

आर्मेनिया में नियुक्त भारत के पूर्व राजदूत अचल मल्होत्रा ने बताया है कि पासपोर्ट की रैंक देश की आर्थिक व राजनीतिक स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अन्य देशों के नागरिकों के प्रति दृष्टिकोण पर निर्भर करती है।

उन्होंने आगे बताया कि 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन के बाद से ही भारत के लोकतंत्र की छवि धीरे-धीरे बदलने लगी। कई भारतीय दूसरे देशों में प्रवास या वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी रह जाते हैं। इसी कारण वर्तमान में कई देश भारत के नागरिकों को लेकर अतिरिक्त सतर्क हैं। इसके अलावा भारत के पासपोर्ट की रैंक घटने का एक और कारण पासपोर्ट की सुरक्षा और जटिल प्रवासन प्रक्रिया है।

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