नई दिल्लीः एक नई इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) के अनुसार पचास हजार से अधिक बच्चे न्याय प्रणाली की धीमी गति का शिकार हैं और विभिन्न लम्बित मामलों में फंसे हुए हैं। उनके खिलाफ आधे से अधिक मामले लंबित 362 किशोर न्यायिक बोर्ड (JJBs) में हैं। यह रिपोर्ट गुरुवार को जारी की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि हालाँकि किशोर न्यायिक अधिनियम को लागू हुए दस साल हो चुके हैं लेकिन न्याय की प्रक्रिया में कई बड़ी खामियाँ अभी भी मौजूद हैं। इन खामियों में न्यायधीशों की कमी, अपर्याप्त निरीक्षण, डेटा प्रणालियों की अनुपस्थिति और राज्य स्तर पर असमानताएँ शामिल हैं, जो न्याय वितरण को प्रभावित कर रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार किशोर न्यायिक प्रक्रिया खामियों की वजह से संघर्ष कर रहे हैं। अध्ययन के अनुसार 31 अक्टूबर 2023 तक 100,904 मामलों में से 55% मामले किशोर न्यायिक बोर्ड में हैं। लंबित मामलों की दर राज्यवार अलग-अलग है, जहाँ ओडिशा में यह दर 83% तक है, जबकि कर्नाटक में यह दर 35% है। देश के विभिन्न राज्यों के 765 जिलों में से 92% में किशोर न्यायिक बोर्ड गठित हैं लेकिन एक चौथाई बोर्ड बिना पूर्ण बेंच के काम कर रहे हैं। औसतन प्रत्येक किशोर न्यायिक बोर्ड पर में 154 मामले लंबित हैं।
क्राइम इन इंडिया डेटा के अनुसार 2023 में 40,036 किशोरों को भारतीय दंड संहिता और विशेष कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया। इन बच्चों में से तीन-चौथाई का आयु वर्ग 16 से 18 वर्ष के बीच था। रिपोर्ट यह भी बताती है कि एक दशक पहले किशोर न्याय प्रणाली को विकेंद्रीकरण करने के बावजूद प्रणालीगत सीमाएँ अभी भी बच्चों के लिए समय पर सहायता और पुनर्वास में रुकावट डाल रही हैं।
रिपोर्ट में यह सामने आया है कि 30% किशोर न्यायिक बोर्ड के पास कानूनी सेवाओं के समाधान का केन्द्र नहीं है। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर सहित 14 राज्यों में 18 वर्ष से ऊपर के बच्चों के लिए सुरक्षा स्थल उपलब्ध नहीं हैं, जो उनके पालन-पोषण के लिए आवश्यक हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चाइल्ड केयर संस्थाओं का निरीक्षण अपर्याप्त है। 166 घरों में से केवल 810 निरीक्षण किए गए, जबकि 1992 निरीक्षणों की आवश्यकता थी।
दूसरी ओर,292 जिलों से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि देश में बालिकाओं के लिए विशेष रूप से केवल 40 चाइल्ड केयर होम्स हैं, जो इस क्षेत्र में असंतुलन को दर्शाता है। रिपोर्ट ने किशोर न्यायिक प्रक्रिया पर राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक डेटा की कमी को प्रमुख रूप से उठाया है। नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड जैसा कोई समकक्ष मंच किशोर न्यायिक बोर्ड के लिए नहीं होने के कारण IJR टीम को बुनियादी जानकारी प्राप्त करने के लिए 250 से अधिक RTI आवेदन दायर करने पड़े।