नई दिल्लीः केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को विपक्ष की उन आशंकाओं को खारिज किया, जिनमें कहा जा रहा था कि विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 से राज्यों और शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता कमजोर होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विधेयक से राज्यों के अधिकारों में कोई कटौती नहीं होगी और उनके पास वही शक्तियां बनी रहेंगी जो वर्तमान में हैं।
धर्मेंद्र प्रधान ने इससे पहले लोकसभा में एक प्रस्ताव पेश कर इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की मांग की थी जिसे सदन ने ध्वनि मत से मंजूरी दे दी। इसके बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि यदि विपक्ष को किसी तरह की गलतफहमी या चिंता है तो उस पर जेपीसी में विस्तार से चर्चा की जा सकती है।
यह विधेयक पहले हायर एजुकेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (एचईसीआई) के नाम से जाना जाता था और इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य उच्च शिक्षा के नियमन से जुड़े मौजूदा तीन निकायों-विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) को मिलाकर एकीकृत संस्था विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान का गठन करना है।
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रस्तावित ढांचे के तहत एक केंद्रीय आयोग के अंतर्गत नियमन, मान्यता (एक्रेडिटेशन) और शैक्षणिक मानकों को सुनिश्चित करने के लिए तीन अलग-अलग परिषदें बनाई जाएंगी। सरकार का दावा है कि इससे उच्च शिक्षा व्यवस्था अधिक पारदर्शी, प्रभावी और समन्वित होगी।
हालांकि विपक्ष ने इस विधेयक को लेकर कड़ी आपत्तियां जताई हैं। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इसे शिक्षा के क्षेत्र में “अत्यधिक केंद्रीकरण” की दिशा में कदम बताया और कहा कि इसमें संस्थागत स्वायत्तता, डिग्री देने के अधिकार, दंड और नियमों को कार्यपालिका पर छोड़ दिया गया है। वहीं डीएमके सांसद टी.एम. सेल्वगणपति ने दावा किया कि विधेयक पारित होने पर केंद्र सरकार ही लगभग एकमात्र निर्णय लेने वाली संस्था बन जाएगी, जो संविधान की भावना के खिलाफ है।
सरकार ने दोहराया है कि विधेयक का उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था को सशक्त करना है, न कि राज्यों या संस्थानों के अधिकारों को कमजोर करना।