यहां पितृपक्ष में अपना पिंडदान करने आते हैं लोग, पर क्यों और कहां?

पिंडदान उन परिजनों का ही किया जाता है, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसी जगह के बारे में सुना है, जहां जीते-जी लोग अपना पिंडदान करने आते हैं।

By Moumita Bhattacharya

Sep 22, 2025 15:25 IST

पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है। साल का यह ऐसा समय होता है, जब हिंदू धर्म से जुड़े लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक का समय पितृपक्ष माना जाता है। इस दौरान पवित्र नदियों के घाटों पर पिंडदान करने का विशेष महत्व माना जाता है। पिंडदान उन परिजनों का ही किया जाता है, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसी जगह के बारे में सुना है, जहां जीते-जी लोग अपना पिंडदान करने आते हैं।

सबसे पहले श्रीराम ने किया था यहां पिंडदान

हमारे देश में पिंडदान के लिए जिन जगहों का सबसे ज्यादा महत्व है, उनमें बिहार का गया जी भी शामिल है। हर साल सिर्फ देश के कोने-कोने से ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में विदेशों से भी लोग अपने मृत परिजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने गया जी पहुंचते हैं।

मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता ने गया जी से होकर बहने वाली फल्गु नदी में राजा दशरथ का श्राद्ध और उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था। इस वजह से ही गया जी में पिंडदान का बड़ा ही महत्व माना जाता है।

खुद का कर सकते हैं श्राद्ध कर्म और पिंडदान

गया जी में 50 से ज्यादा पवित्र स्थान हैं, जहां पितरों का पिंडदान किया जाता है। लेकिन यहां एक मंदिर ऐसा है जहां व्यक्ति खुद का श्राद्ध कर सकता है। जनार्दन मंदिर वेदी दुनिया भर में एकलौता मंदिर है, जहां कोई व्यक्ति अपने जीते-जी खुद का श्राद्ध व पिंडदान कर सकता है। कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु स्वयं जनार्दन स्वामी के रूप में पिंड ग्रहण करते हैं।

पर आप जरूर सोच रहे होंगे कि कौन ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो अपने जीते-जी पिंडदान कर देते हैं? दरअसल, यह ऐसे लोग होते हैं, जो सन्यास, वैराग्य लेकर घर से दूर हो जाते हैं। अगर किसी व्यक्ति के परिवार में कोई न हो या अपनी कोई संतान न हो, तब भी लोग गया जी में आकर अपना श्राद्ध और पिंडदान करके जाते हैं।

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