छठ महापर्वः जब सूर्यदेव ने असुर को दिया पुत्र बनने का वरदान, जानिए, छठ व्रत से जुड़ी कर्ण की कहानी

By लखन भारती

Oct 26, 2025 11:47 IST

लोक आस्था के महापर्व छठ में शुद्धता और पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है। छठ पर्व छठी मैया और सूर्य उपासना का प्रतीक है। पूजा में सूर्यदेव को अर्घ्य देने से जीवन में सुख, समृद्धि और आरोग्य की कामना की जाती है और छठी मैया की पूजा अर्चना करने से संतान की दीर्घायु और उन्नति की होती है।

छठ पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। इसी पावन परंपरा का आधार महाभारत के अद्भुत पात्र सूर्यपुत्र कर्ण यानी अंगराज कर्ण से भी जुड़ा हुआ है। चार दिनों तक चलने वाले इस छठ पूजा में व्रती 36 घंटे तक निर्जल उपवास रखते हैं। कहते हैं कि इस पूजा से व्यक्ति के पाप दूर होते हैं, परिवार में सुख-समृद्धि आती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन यानी अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया।

महान योद्धाओं में से एक कर्ण

महाभारत में कर्ण को महान योद्धाओं में से एक माना गया है, जिनकी बहादुरी, दानवीरता और धर्म के प्रति आस्था आज भी लोगों के लिए प्रेरणा है। कर्ण सूर्यदेव के पुत्र थे, जिन्हें माता कुंती ने सूर्य मंत्र के जाप से जन्म दिया था। सामाजिक दबाव के कारण कुंती ने कर्ण को नदी में बहा दिया। नदी में बहता यह बच्चा राधा-अधिरथ दंपति को मिला, जिन्होंने उसे पाला। बालक कर्ण में सूर्य देव का आशीर्वाद और दिव्यता स्पष्ट रूप से झलकती थी। उनका पूर्वजन्म भी सूर्य देव के प्रति समर्पित था।

सूर्यदेव ने दिया पुत्र बनने का वरदान

कहा जाता है कि पूर्वजन्म में कर्ण दंभोद्भवा नामक असुर थे, जिसे सूर्य देव ने 1000 कवच और दिव्य कुंडल दिए थे, जो उसे असाधारण सुरक्षा प्रदान करते थे। वरदान के कारण वह असुर अपने को अजेय-अमर समझकर अत्याचारी हो गया था। नर और नारायण ने बारी-बारी से तपस्या करके दंभोद्भवा के 999 कवच तोड़ दिए और जब एक कवच बच गया तो असुर सूर्य लोक में जाकर छुप गया। सूर्य देव ने उनकी भक्ति देखकर अगले जन्म में उन्हें अपना पुत्र बनने का वरदान दिया।

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