लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा अब एक दिन दूर है। शनिवार को नहाय-खाय की परंपरा के साथ कद्दू-भात का प्रसाद ग्रहण कर चार दिवसीय सूर्य उपासना का पर्व यानी छठपूजा शुरू होगी। इसके लिए बाजारों में सूप, डाला, नारियल, और विभिन्न फलों व सब्जियों की जबरदस्त बिक्री होने लगी है। शनिवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो रहा है। इस चार दिवसीय पर्व में सूर्य देव और छठी मइया की उपासना की जाती है। व्रती महिलाएं शुद्धता और सात्विकता का पालन करती हैं। घरों में पारंपरिक छठ गीत गूंज रहे हैं और वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। छठ पर्व श्रद्धा और अनुशासन का प्रतीक है। बिहार का मुख्य पर्व छठपूजा पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत झारखंड और नेपाल की तराई में बड़े ही जोर शोर के साथ पर्व मनाया जाता है लेकिन भारत के विभिन्न प्रांतों में पर्व की रौनक दिखाई पड़ती है।
पश्चिम बंगाल में भी छठ उत्सव की धूम देखने को मिलती है। राजधानी कोलकाता समेत आसपास के जिलों में हावड़ा, हुगली. उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नदिया, बर्दवान और उत्तर बंगाल में भी पर्व की रौनक दिखने लगती है। इस बार भी छठपूजा का उत्साह देखने को मिल रहा है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक अब वातावरण पूरी तरह छठमय हो गया है।
बंगाल के विभिन्न बाजारों में फलों और सब्जियों की खरीददारी देखने को मिल रही है। शनिवार को नहाय-खाय के बाद रविवार, 26 अक्टूबर को व्रती खरना का व्रत रखेंगे। सोमवार, 27 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा और मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य यानी उषा अर्घ्य देने के साथ पर्व संपन्न होगा।
धर्माचार्यों का मानना है कि छठ व्रत में शुद्धता और सात्विकता की प्रधानता होती है। सूर्य देव की उपासना करने से शारीरिक और मानसिक कष्टों का निवारण होता है। व्रती नहाय-खाय से ही अपने शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध कर व्रत की शुरुआत करते हैं। इस दिन व्रती अरवा चावल, चने की दाल, सेंधा नमक और कद्दू की सब्जी का भोजन ग्रहण करते हैं।
कद्दू को शुद्ध और सुपाच्य माना गया है, जो व्रती को ऊर्जा प्रदान करता है। व्रती महिलाएं गंगा स्नान कर लकड़ी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तनों में भोजन बनाती हैं, ताकि किसी प्रकार की अशुद्धि न रहे। शहर के गली-मोहल्लों में कांची के बांस बंगही, बंगही लचकत जाय, चार हो कोना के पोखरिया, जल उमड़ल जाय जैसे पारंपरिक गीतों की गूंज सुनाई दे रही है। जिन घरों में छठ पर्व होता है, वहां का माहौल पूरी तरह भक्ति और उल्लास से भरा है। एक ओर महिलाएं गेहूं सुखा रही हैं, तो दूसरी ओर गीतों की स्वर-लहरियां वातावरण को पवित्र बना रही हैं।