यहां बांसुरी की धुन पर दूध देती हैं गौमाता

दक्षिणेश्वर रामकृष्ण संघ(आद्यापीठ) की गौशाला में लगभग 200 गायें बांसुरी की धुन सुनकर दूध देती हैं। क्या है वजह, जानकर चौंक जाएंगे।

By लखन भारती

Sep 22, 2025 20:37 IST

कोलकाताः अद्भुत है पर सत्य है। कोलकाता के पास दक्षिणेश्वर रामकृष्ण संघ(आद्यापीठ) की गौशाला में लगभग 200 गायें हैं, जो बांसुरी की धुन पर दूध देती हैं। यह भी सत्य है कि ज्यादातर गायें कोई भी संगीत सुनकर इतना मगन हो जाती हैै कि वह आसानी से दूध देती है क्योंकि संगीत की धुन से ऑक्सीटेनिस हार्मोन सक्रिय हो जाता है, जिससे गायें खुद को रिलेक्स महसूस करने लगती है और दूध देने लगती हैं।

यह दावा राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान(एनडीआरआई) भी कर चुका है। खैर, यह रही किसी भी संगीत थेरेपी के आधार पर गायों का दूध देना लेकिन आद्यापीठ की गायें सिर्फ बांसुरी की ही धुन पर दूध देती है, यह कुछ नायाब लगता है। साधु-संत इसे चमत्कार मान रहे हैं। आद्यापीठ के ट्रस्टी व महासचिव ब्रह्मचारी मुराल भाई ने बताया कि कुछ साल पहले उनकी गौशाला में एक काली गाय थी। उसी दौरान गौशाला में राधा-कृष्ण की एक मूर्ति स्थापित की जा रही थी। मूर्ति स्थापना के बाद बांसुरी की धुन बजाई जा रही थी तभी वही काली गाय के थन से खुद ही दूध निकलने लगा।

लोगों के लिये हैरान करने वाली बात तो यह थी कि वह गाय किसी बच्चे को जन्म तक नहीं दी थी फिर भी दूध देने लगी। दूध को प्रयोगशाला में जांच कराई गयी। जांच रिपोर्ट में उस गाय का दूध सामान्य गायों की दूध की तरह ही दूध साबित हुआ। उसी दिन से गौशाला में बांसुरी की धुन बजाई जाने लगी। ऐसा बताया जा रहा है कि अब तो गौशाला की गायों को बांसुरी की धुन ऐसी लगने लगी कि जबतक बांसुरी की आवाज गायों की कानों में नहीं जाती तब तक गायें दूध तक नहीं देती हैं। आखिर बांसुरी की धुन पर ही गायों का दूध निकलना आश्चर्य माना जा रहा है। वहीं आद्यापीठ के साधु-संत इसे भगवान श्री कृष्ण और मां आद्या का चमत्कार मान रहे हैं।

पाठकों को यह बता दूं कि आद्यापीठ देश-विदेशों में फैला हुआ है। दक्षिणेश्वर का आद्यापीठ मुख्यालय है। इसकी स्थापना 1915 में अन्नदा चरण भट्टाचार्य ने की थी। आज के दौर में स्वामी अन्नदा ठाकुर के नाम से वे जाने जाते हैं। मुख्य मंदिर में बालिका रूप में मां आद्या विराजमान हैं। मां आद्या की मर्ति के साथ दो और बेदी बनी हुई है। सबसे ऊपर वाली बेदी पर राधा-कृष्ण और सबसे नीचे वाली बेदी पर स्वामी रामकृष्ण परमहंस विराजमान हैं। हर साल यहां चैत्र की रामनवमी के दिन सामूहिक तौर पर दो हजार कुंवारी कन्याओं का देवी स्वरूप मानकर पूजा किया जाता है। स्वामी अन्नदा ठाकुर का मानना था कि कुंवारियों में ही मां आद्या का अंश होता है। इसलिये यहां कुंवारी कन्याओं को पूजा जाता है। आद्यापीठ में कई आश्रम हैं और बीएड कॉलेज भी हैं।

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