अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) द्वारा रूस से तेल-गैस खरीद पर नए प्रतिबंध लागू होने के बाद हालात तेजी से बदले हैं। कुछ सप्ताह पहले तक जहां भारतीय बैंक किसी भी तरह के रूसी तेल सौदे का भुगतान करने से कतराते थे, वहीं अब वे शर्तों के साथ वित्तीय सहायता देने को तैयार हैं। इस मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार, यदि खरीद ऐसे रूसी विक्रेताओं से की जाती है जो अमेरिका या EU की प्रतिबंधित सूची में नहीं हैं और पूरी प्रक्रिया नियमों के अनुरूप होती है तो बैंक भुगतान उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं।
भारत की खरीद पर दुनिया की नजर
अमेरिका की बढ़ती सख्ती के बाद दुनिया भर में यह चर्चा तेज है कि भारत अब रूस से तेल कैसे और किन रास्तों से खरीद रहा है। यूक्रेन युद्ध के कारण रूस पर प्रतिबंध कड़े हुए हैं, लेकिन साथ ही अमेरिका संघर्ष खत्म करने को लेकर कूटनीतिक कोशिशों पर भी जोर दे रहा है। ऐसे जटिल माहौल में भारत रूस का सबसे बड़ा ग्राहक बनकर उभरा है। हालांकि वैश्विक बाजार में पर्याप्त उपलब्धता होने के कारण भारतीय रिफाइनर अन्य स्रोतों से भी तेल खरीद पा रहे हैं, भले कीमतें अधिक हों।
बैंकों ने बनाया कंप्लायंस फ्रेमवर्क
सूत्र बताते हैं कि रूसी तेल आयात को लेकर भारतीय बैंकों ने एक विशेष कंप्लायंस प्रणाली तैयार की है, जिसके तहत भुगतान UAE दिरहम या चीनी युआन में किया जा सकता है।फिर भी कड़े नियम लागू किए गए हैं। बैंक और रिफाइनरी दोनों अब तेल के स्रोत, जहाजों के इतिहास,परिवहन में लगे टैंकरों का किसी प्रतिबंधित संस्था से जुड़ाव की गहन जांच कर रहे हैं। विशेषकर शिप-टू-शिप ट्रांसफर वाले सौदों में ब्लैकलिस्टेड कंपनियों की संलिप्तता को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है।
प्रतिबंधों के बाद ऑर्डर घटे, व्यापार में बड़ा असर
अमेरिका के नए प्रतिबंध लागू होने के बाद दिसंबर डिलीवरी के लिए भारतीय तेल कंपनियों ने रूस से बड़े ऑर्डर नहीं दिए। Rosneft, Lukoil, Gazprom Neft और Surgutneft gas जैसी अनेक कंपनियों पर प्रतिबंधों से व्यापार को बड़ा झटका लगा है। हालांकि 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस–भारत तेल व्यापार सबसे तेजी से बढ़ा था और भारत रूस का बड़ा ग्राहक बन गया था।
रूस दे रहा है बड़ा डिस्काउंट, भारत का रुख देखने पर निगाहें
प्रतिबंधों के चलते रूस के प्रमुख Ural crude का डिस्काउंट अब Brent की तुलना में बढ़कर 7 डॉलर प्रति बैरल हो गया है, जो पहले करीब 3 डॉलर था। रूस इस भारी छूट के माध्यम से भारतीय रिफाइनरों को फिर आकर्षित करना चाहता है। अब देखना होगा कि प्रतिबंधित कंपनियों को छोड़कर भारत अन्य रूसी कंपनियों से खरीद बढ़ाता है या नहीं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसी भी सौदे में अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित संस्था की थोड़ी-सी भी भागीदारी पाई गई तो भुगतान अटक सकता है। लेनदेन रोक दिया जा सकता है और संबंधित भारतीय संस्था को सेकेंडरी सैंक्शन का खतरा भी हो सकता है।