नई दिल्ली/कोलकाता: केंद्र के नए श्रम कानूनों के कारण लंबे समय से ‘अदृश्य’ पहचान के पीछे काम करने वाले गिग और प्लेटफ़ॉर्म कर्मियों को आखिरकार कानूनी मान्यता मिल गई है। डिलीवरी पार्टनर हों या ऐप-आधारित वाहन चालक -जो अब तक देश की अर्थव्यवस्था का पहिया चुपचाप घुमाते आए हैं, अब उनके लिए सामाजिक सुरक्षा के द्वार खोले जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव न सिर्फ कानूनी मान्यता देता है बल्कि अनिश्चितताओं से भरी जिंदगी को कुछ हद तक स्थिरता भी प्रदान करेगा।
अनिवार्य नियुक्ति पत्र, प्रॉविडेंट फंड, कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) की बीमा सुविधा और सामान्य बीमा-इन सबके साथ गिग कर्मियों के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत होने जा रही है।
JSA Advocates & Solicitors की पार्टनर प्रीथा एस ने कहा, “तेजी से बढ़ते इस कार्यक्षेत्र को पहली बार कानूनी मान्यता दी गई है। इसके चलते सामाजिक सुरक्षा की एक नई नींव तैयार होगी और बड़ा परिवर्तन आएगा।”
केंद्र के इस फैसले से जहां गिग वर्कर्स के सामने बड़े अवसर खुल रहे हैं, वहीं प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है क्योंकि अब उन्हें कर्मचारियों के कल्याण के लिए सामाजिक सुरक्षा कोष में योगदान करना ही होगा। गिग इकॉनमी की प्रमुख कंपनियों ने इस कदम का स्वागत किया है। अमेज़न ने कहा कि वह सरकार के श्रम सुधारों के प्रयासों का सम्मान करती है और आवश्यक बदलाव करने को तैयार है।
दूसरी ओर, रैपिडो का मानना है कि काम का माहौल अब काफी बदल गया है, इसलिए कर्मचारियों की सुरक्षा की संरचना भी बदलनी चाहिए। फूड डिलीवरी कंपनी ज़ोमैटो और क्विक कॉमर्स कंपनी ब्लिंकइट की पैरेंट कंपनी इटर्नल का कहना है कि ये नियम लंबे समय में व्यापार को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे बल्कि सामाजिक सुरक्षा को और मजबूत करेंगे।
ज़ेप्टो का दावा है कि केंद्र के नए श्रम कानून न सिर्फ गिग कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं बल्कि तेज़ी से व्यापार विस्तार में भी मददगार होंगे। वर्तमान में भारत में गिग वर्कर्स की संख्या लगभग 1 करोड़ है। नीति आयोग के अनुमान के अनुसार, अगले पांच वर्षों में यह संख्या बढ़कर 2.35 करोड़ तक पहुंच सकती है।
Team Lease RegTech के सीईओ ऋषि अग्रवाल ने कहा, “इन कर्मचारियों ने अब तक देश की आर्थिक वृद्धि के लिए चुपचाप ऊर्जा प्रदान की है। आज उन्हें औपचारिक रूप से एक प्रणाली के अंतर्गत लाया गया है। यही सबसे बड़ा लाभ है।”
हालांकि, विशेषज्ञों के एक वर्ग का कहना है कि गिग वर्कर्स के कार्य समय, आय के स्रोत और जिम्मेदारियां बदलती रहती हैं, इसलिए उनके अधिकार कितनी प्रभावी तरह लागू होंगे, यह देखना बाकी है। नौकरी प्लेटफ़ॉर्म अपना के सीईओ कार्तिक नारायण का कहना है, “नियम होना एक बात है, पर उनका वास्तविक लागू होना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए मजबूत डिजिटल ढांचा और निरंतर निगरानी ज़रूरी है।”
Quess Corp के लोहित भाटिया के अनुसार, “आज की डिजिटल तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था में मजबूत भविष्य की नींव रखने के लिए यह श्रम कानून बेहद आवश्यक हैं।”
फिर भी सवाल यह है कि यह सपना कितनी जल्दी हकीकत बनेगा? इसी ओर देश के लाखों गिग वर्कर्स अब उम्मीदें लगाए बैठे हैं।