OTT और VOD प्लेटफॉर्म्स पर नया नियम: अश्लील और भ्रामक कंटेंट पर लगेगा प्रतिबंध

‘कोड ऑफ एथिक्स’ के जरिए कंटेंट की सीमाएं तय। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर और कानूनी चुनौतियों को लेकर बढ़ा विवाद।

By सुदीप्त बनर्जी, Posted by: श्वेता सिंह

Nov 25, 2025 19:28 IST

देश में बहुप्रचलित OTT वीडियो प्लेटफॉर्म, डिजिटल न्यूज़ आउटलेट और वीडियो-ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म पर ‘अश्लील’ कंटेंट की रोकथाम को सख्त बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार सूचना प्रौद्योगिकी (IT) एक्ट, 2025 में संशोधन करने पर विचार कर रही है। यह जानकारी एक राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित खबर में दी गई है।

सूत्रों के मुताबिक, IT एक्ट 2025 का तीसरा भाग, जो OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल न्यूज़ आउटलेट्स के संचालन से संबंधित है, इसी प्रस्तावित बदलाव के तहत केंद्र की पहल बन गया है। इस बदलाव के जरिए ‘अश्लील’ शब्दावली की परिधि बढ़ाकर इसमें ‘मानहानिकारक आरोप’, ‘अर्धसत्य’, ‘राज्यविरोधी प्रवृत्ति’ को शामिल करने का विचार है। साथ ही, देश के सामाजिक, नागरिक और नैतिक जीवन के किसी हिस्से की आलोचना करने जैसी चीज़ों को भी इस दायरे में लाया जा सकता है।

इसके साथ ही यह भी प्रस्तावित है कि ‘अश्लील डिजिटल कंटेंट’ को परिभाषित करने के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा या ‘कोड ऑफ एथिक्स’ तैयार की जाए, जिससे भविष्य में निर्णय लेने में सुविधा हो। यह पहल केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन आएगी।

नाम न प्रकाशित करने वाले सूत्रों के अनुसार, इस कोड के जरिए देश के OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल न्यूज़ आउटलेट्स के कंटेंट को नियंत्रित किया जाएगा ताकि यह शालीनता और स्वाद के खिलाफ न हो। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी जाति, धर्म, वर्ण, विश्वास, लिंग या राष्ट्रीयता को चोट न पहुंचे और किसी धर्म या समुदाय पर हमला न किया जाए। साथ ही, जानबूझकर झूठ, संकेत या अर्धसत्य वाले कंटेंट को फैलाने या राज्यविरोधी प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने की संभावना को रोका जाएगा।

कोड के माध्यम से व्यक्तिगत या समूह के खिलाफ मानहानि फैलाने की भी रोक होगी। इससे महिलाओं, बच्चों और विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों का अपमान रोकने के साथ-साथ जातीय, भाषाई और क्षेत्रीय समूहों के प्रति व्यंग्यात्मक या अपमानजनक कंटेंट भी OTT, डिजिटल न्यूज़ और वीडियो-ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म पर नहीं प्रसारित होगा।

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ‘डिजिटल कंटेंट में पारदर्शिता’ लाने के नाम पर सरकार प्लेटफॉर्म के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। उनका दावा है कि ‘मानहानिकारक वक्तव्य’ की परिभाषा सरकार तय करेगी और इसे समझना मुश्किल हो सकता है। सरकार की पसंद न होने पर इसे ‘मानहानिकारक’ घोषित किया जा सकता है।

साल की शुरुआत में ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ कार्यक्रम में रणबीर अलाहबादिया की टिप्पणी को लेकर विवाद हुआ था, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या वे ऑनलाइन कंटेंट में अश्लीलता रोकने के लिए नए नियम ला रहे हैं। इसके बाद IT नियमों में संशोधन की प्रक्रिया तेज हुई।

खसड़े में यह संकेत भी है कि भविष्य में आतंकवाद रोधी अभियानों की लाइव कवरेज को ‘अश्लीलता’ में शामिल किया जा सकता है। ऐसे में इन ऑपरेशनों की खबर केवल सरकारी बयान तक सीमित हो सकती है।

सरकार का तर्क है कि संवैधानिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ढाल बनाकर डिजिटल माध्यमों में हिंसा, अश्लीलता और भ्रामक संदेश फैलाने से आम लोगों में चिंता बढ़ रही है। इसलिए सख्त नियंत्रण ढांचे की जरूरत है।

हालांकि, नए नियम लागू करने में बड़ी बाधा कानूनी चुनौती है। IT नियमों के तीसरे भाग के अनुसार, OTT सेवाओं को स्व-नियंत्रण, उद्योग नियंत्रण और सरकारी निगरानी के तीन स्तरों वाली शिकायत निवारण प्रणाली के तहत काम करना होता है। लेकिन बॉम्बे और मद्रास हाईकोर्ट ने इस व्यवस्था की कई धाराओं को स्थगित कर रखा है। केरल हाईकोर्ट ने भी फिलहाल सख्त कदम उठाने से रोक लगाई है। लगभग 15 मामलों में IT नियमों के विभिन्न हिस्सों को चुनौती दी गई है, जिनकी सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट में हो रही है।

कुल मिलाकर, केंद्र डिजिटल कंटेंट नियंत्रण में कड़ा रुख अपनाना चाहता है। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अत्यधिक नियंत्रण के संभावित टकराव को लेकर विवाद बढ़ने की संभावना भी जताई जा रही है।

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