रुपए में फिर से गिरावट दर्ज, भारतीय मुद्रा की इस हालत की क्या है वजह?

सिर्फ डॉलर ही नहीं बल्कि हाल के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया की दूसरी चार बड़ी मुद्राओं - ब्रिटिश पाउंड-यूरो, जापानी येन और चीनी युआन का एक्सचेंज रेट भी पिछले एक साल में सबसे ज्यादा गिरावट आयी है।

By Anshuman Goswami, Posted By : Moumita Bhattacharya

Dec 02, 2025 13:42 IST

भारतीय मुद्रा 'रुपए' में गिरावट रुकने का नाम नहीं ले रही है। सोमवार को हुई गिरावट की वजह से रुपए ने डॉलर के मुकाबले निचले स्तर का नया रिकॉर्ड बनाया था। मंगलवार को फिर गिरावट के साथ ही वह रिकॉर्ड भी टूट गया। मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए की कीमत ₹89.85 थी। सोमवार को यह कीमत ₹89.73 थी। रुपए की कीमत में आ रही लगातार गिरावट की वजह से देश भर के अर्थशास्त्रियों की चिंता बढ़ गयी है।

एशिया में 'सबसे कमजोर' है भारतीय मुद्रा

नवंबर के पीक पर डॉलर का एक्सचेंज रेट ₹88.57-₹88.78 के बीच ऊपर-नीचे हो रहा था, लेकिन 21 नवंबर को यह एक ही दिन में 0.8% गिर गया और 89 डॉलर के बैरियर को भी पार कर गया था। बताया जाता है कि इसके बाद से ही इसने 'रिबाउंड' की ताकत खो दी। आंकड़े बताते हैं कि इस साल नवंबर तक रुपए में 4.8% की गिरावट आयी है।

इस वजह से यह इस साल में एशिया में 'सबसे कमजोर परफॉर्म करने वाली' मुद्रा बन गई है। सिर्फ डॉलर ही नहीं बल्कि हाल के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया की दूसरी चार बड़ी मुद्राओं - ब्रिटिश पाउंड-यूरो, जापानी येन और चीनी युआन का एक्सचेंज रेट भी पिछले एक साल में सबसे ज्यादा गिरावट आयी है।

मुश्किल हालात

इसकी हद को समझाना मुश्किल है। अगर इसे आसान शब्दों में समझें तो जैसे कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स देश में महंगाई दर का अंदाजा होता है। ठीक वैसे ही मुद्रा की 'दर' को समझने के लिए दो इंडेक्स हैं - नॉमिनल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट (NER) और रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट (REER)।

जहां यह समझा जाता है कि 40 देशों की मुद्रा के हिसाब से किसी देश की मुद्रा की स्थिति कितनी अच्छी या बुरी है। ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत का 88% विदेशी व्यापार इस इंडेक्स में शामिल 40 देशों के साथ होता है, जिसे 2015-16 में लॉन्च किया गया था। डॉलर इंडेक्स की तरह अगर NER-REER बढ़ता है तो इसका मतलब है कि मुद्रा 'मजबूत' है। कई बार इसका उल्टा भी होता है।

प्रमुख बैंक के आंकड़ों से मिली जानकारी के मुताबिक इस साल अक्टूबर में रुपया पिछले साल अक्तूबर के 90.85 रुपए के मुकाबले गिरकर 84.58 रुपये पर आ गया है। 'रिर' की भी लगभग यही हालत है जो अक्टूबर में गिरकर 97.47 रुपये पर आ गया।

दोनों आंकड़े चार साल के सबसे निचले स्तर पर हैं। अब यह समझना मुश्किल नहीं है कि नवंबर में रुपये में और गिरावट ने इस अंतर को और भी बढ़ा दिया है। यहीं वजह है कि फरवरी में केंद्रीय बजट पेश करने से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की मुश्किलें भी बढ़ती नजर आ रही हैं।

समझौतों में देरी

विशेषज्ञ इस साल रुपये में गिरावट का सबसे बड़ा कारण ट्रंप-टैरिफ और वॉशिंगटन के साथ कई सालों की बातचीत के बावजूद बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट पर साइन न हो पाना बता रहे हैं। ज्यादातर का मानना है कि अगर इस साल एग्रीमेंट पर कुछ स्पष्ट नहीं हुआ तो रिजर्व बैंक की हजारों कोशिशों के बावजूद रुपया-डॉलर एक्सचेंज रेट 90 को पार कर जाएगा।

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