नए श्रम कानूनों के खिलाफ उबाल: श्रमिक संगठनों का बुधवार को देशव्यापी विरोध का ऐलान

केंद्र के बड़े बदलाव को बताया ‘धोखा’, सरकार से तत्काल वापसी की मांग

By सुदीप्त बनर्जी, Posted by: श्वेता सिंह

Nov 24, 2025 17:34 IST

देश की श्रम नीति में आज़ादी के बाद सबसे बड़ा बदलाव लागू करने का फैसला केंद्र सरकार ने लिया है। शुक्रवार को सरकार ने नए श्रम कानून लागू करने की घोषणा की जिसके तुरंत बाद देश के दस प्रमुख श्रमिक संगठनों ने इसे ‘श्रमिकों के साथ धोखा और भ्रामक सुधार’ करार दिया।

इन संगठनों ने आगामी बुधवार को देशभर में व्यापक विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है और सरकार से इस कानून को तत्काल वापस लेने की मांग की है।

सरकार का दावा—निवेश बढ़ेगा, श्रमिक होंगे और सुरक्षित

मोदी सरकार का कहना है कि संसद द्वारा पांच वर्ष पहले मंज़ूर किए गए चार नए श्रम संहिताओं के लागू होने से पुराने, औपनिवेशिक दौर के जटिल नियम खत्म होंगे।

सरकार के मुताबिक विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ेगी, श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा मजबूत मिलेगी, न्यूनतम मज़दूरी का अधिकार और पुख़्ता होगा। संगठनों का कहना है कि नए कानून से उद्योग मालिकों को अत्यधिक अधिकार मिल जाएंगे जिससे रोजगार और भी अस्थिर होगा, श्रमिकों की सुरक्षा घटेगी।

नए प्रावधानों के अनुसार

कंपनियां अब कर्मचारियों की नियुक्ति और छंटनी पहले से कहीं ज्यादा आसानी से कर सकेंगी। जहां पहले 100 कर्मचारियों वाली इकाइयों को छंटनी से पहले सरकारी अनुमति लेनी पड़ती थी, अब यह सीमा 300 कर्मचारियों तक बढ़ा दी गई है।

शिफ्ट का समय बढ़ाने की छूट भी दी गई है। महिलाओं को नाइट शिफ़्ट में काम कराने की अनुमति मिलने पर सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं उठी हैं।

उद्योग जगत का एक हिस्सा भी नाराज़

इंडियन एसोसिएशन ऑफ एंटरप्रेन्योर्स ने कहा है कि सामाजिक सुरक्षा बढ़ने से एमएसएमई सेक्टर पर संचालन लागत भारी रूप से बढ़ेगी जिससे उत्पादन प्रभावित हो सकता है। वे नई व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से लागू करने और ट्रांज़िशनल सपोर्ट देने की मांग कर रहे हैं।

हर संगठन विरोध में नहीं-BMS ने किया समर्थन

भाजपा समर्थित भारतीय मज़दूर संघ (BMS) ने कहा है कि कुछ सुझावों पर चर्चा के बाद राज्य सरकारों को इन संहिताओं को जल्द लागू करना चाहिए। केंद्र का दावा है कि चारों श्रम संहिताएं न्यूनतम मज़दूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा, कार्यस्थल पर सुरक्षा का संतुलित समन्वय हैं जो श्रमिकों के अधिकारों को मजबूत करेंगे।

विरोधी संगठनों का आरोप - “श्रमिकों की राय को नजरअंदाज किया गया”

विरोधी यूनियनों का आरोप है कि श्रमिकों की राय को दरकिनार कर सरकार ने यह कानून थोप दिया है। उनका कहना है कि मोदी सरकार कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही है, श्रमिक असुरक्षित हो रहे हैं। श्रम मंत्रालय ने अब तक इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। अगले सप्ताह देशभर में जिस तरह आंदोलन की तैयारियां चल रही हैं, उससे स्पष्ट है कि नए श्रम कानूनों को लेकर विवाद और भी तेज होने वाला है।

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