जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सिर्फ एक टूल से सिस्टम बनने की ओर बढ़ रहा है यह चुपके से कई बातों में बदलाव ला रहा है जिनमें ब्रांड कैसे बढ़ते हैं, मूल्या कैसे निर्धारित होती है, और आने वाले दशक में वित्तीय शक्तियां किसके पास होगी, शामिल है। एई समय से हुई लंबी बातचीत में ग्लोबल ब्रांड स्ट्रैटेजिस्ट डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर (Dr. Erich Joachimsthaler) ने बताया कि भविष्य ज्यादा शोर मचाने वाले इनोवेटर्स का नहीं होगा, बल्कि उनका होगा जो बड़े पैमाने पर जटिलता का प्रबंधन कर सकते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि भारत इस बदलाव का नेतृत्व करने के लिए खास स्थिति में क्यों है!
AI आज की दुनिया को आकार देने वाली सबसे ज्यादा चर्चित ताकतों में से एक बन गया है। आपके अनुसार आप AI को आज समाज, बिजनेस और उपभोक्ताओं के काम करने के तरीके को मौलिक रूप से कैसे बदलते हुए देखते हैं?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
AI का अचानक से आना इस पल को खास नहीं बनाती है बल्कि इसका आसानी से उपलब्ध हो जाना ही इस पल को खास बनाती है। AI पिछले कई दशकों से विकसित हो रहा है लेकिन पिछले तीन सालों में खासकर नवंबर 2022 से हमने एक बड़ा कदम उठाया है। बड़े भाषाई मॉडल ने AI को इस्तेमाल करने लायक, वीजिबल और रोजमर्रा की जिंदगी के लिए जरूरी बना दिया है।
अब हम एक ऐसे स्थिति में आ चुके हैं जहां AI अब सिर्फ प्रयोगात्मक नहीं रहा। अब यह संचालन का हिस्सा बन चुका है। यह रियल टाइम में फैसलों, व्यवहार और नतीजों को आकार दे रहा है। निवेशों का पैमाना ही सब कुछ बताता है। दुनिया भर में AI में निवेश $1.4 ट्रिलियन तक पहुंच रहा है।
इतने बड़े स्तर की प्रतिबद्धता किसी शॉर्ट-टर्म ट्रेंड के लिए नहीं होती। हम जो देख रहे हैं वह एक संरचनात्मक बदलाव है। AI इस बात का हिस्सा बन रहा है कि अर्थव्यवस्थाएं कैसे काम करती हैं, कंपनियां कैसे मुकाबला करती हैं और लोग सिस्टम के साथ कैसे संपर्क तैयार करते हैं। यह ऐसा पल नहीं है जो गुजर जाएगा बल्कि यह एक ऐसा रास्ता है जो अगले दशक को तय करेगा।
भारत खास तौर पर AI-आधारित बिजनेस मॉडल की ओर तेजी से बढ़ रहा है। भारत के इस सफर में आपको सबसे ज्यादा क्या उत्साहित करता है?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
भारत AI युग में कुछ ऐसे फायदों के साथ कदम रख रहा है जो कई देशों के पास नहीं हैं। पहला भारत लंबे समय से वैश्विक अर्थव्यवस्था के संचालन में रीढ़ की हड्डी की तरह काम कर रहा है। AI सीधे इसी ताकत पर काम करता है - जटिलता, कौशल और स्वाधिनता को मैनेज करता है।
दूसरा AI एंटरप्राइज सिस्टम से आगे बढ़कर उपभोक्ताओं की जिंदगी में आ चुका है। जब ChatGPT जैसी कोई तकनीक इतिहास में किसी भी और प्लेटफॉर्म के मुकाबले सबसे ज्यादा तेजी से हर सप्ताह लाखों-करोड़ों यूजर्स तक पहुंचती है तो यह आपको कुछ बहुत गहरी बात बताती है। यह तकनीकी रूप से सहज, आसानी से सीख पाने लायक और अपने इंटरफेस में बहुत ज्यादा मानवीय है।
भारत के लिए यह एक अभूतपूर्व मौका है। AI मौजूदा क्षमताओं को बढ़ा सकता है न कि सब कुछ नए सिरे से शुरू करने पर मजबूर करेगा। तकनीकों की वजह से होने वाले बदलावों के साथ काम करने के अपने 30 सालों के अनुभव में मैंने शायद ही कभी ऐसा पल देखा हो जब टाइमिंग, टैलेंट और संरचनात्मक तैयारी इतनी स्पष्टता के साथ एक साथ मिलें जैसा कि आज भारत के लिए हो रहा है।
AI से उम्मीदें तो हैं लेकिन चिंताएं भी हैं। रणनीतिक नजरिए से क्या आपको AI का भविष्य सच में समृद्ध लगता है?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
हां, लेकिन खुशहाली असमान रूप से आएगी। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि देश और कंपनियां कहां मुकाबला करना चुनते हैं। फाउंडेशनल AI मॉडल विकसित करने पर पहले से ही कुछ ही कंपनियों का दबदबा है। भारत के पास इसमें कोई प्रतिस्पर्धी फायदा नहीं है और न ही यूरोप के पास है। वह लड़ाई काफी हद तक खत्म हो चुकी है।
असली मौका एप्लीकेशंस में है। AI का इस्तेमाल करके बड़े और जटिल प्रक्रियाओं को दोबारा डिजाइन करने में किया जा रहा है। AI किसी उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए उपयोगी है। काम को अनुकूलित करने के लिए इस्तेमाल होने वाला AI धीरे-धीरे सुधार लाता है। लेकिन AI का उपयोग पूरे इकोसिस्टम, वित्तीय, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, लॉजिस्टिक्स को दोबारा इंजीनियर करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जो परिवर्तनकारी होता है।
भारत की ताकत तालमेल बिठाने में है - लोगों, प्रक्रियाओं, डाटा और तकनीक को बड़े पैमाने पर एक साथ लाना। यहीं पर AI बहुत ज्यादा फायदा पहुंचाता है और इसीलिए यह पल देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
पारंपरिक रूप से ब्रांडिंग दृश्यता और धारणा के बारे में रही है। AI आज ब्रांड्स को बनाने और बनाए रखने के तरीके को कैसे बदलता है?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
AI इंटरनेट के आर्किटेक्चर को पूरी तरह से बदल रहा है और ब्रांडिंग असल में इंटरनेट पर ही होती है। पहले ब्रांडिंग आकर्षण अर्थव्यवस्था पर काम करती थी। ब्रांड विजिबिलिटी, जागरूकता और याद रखने के लिए मुकाबला करते थे। आकर्षण ही मुद्रा हुआ करती थी। AI हमें इरादातन अर्थव्यवस्था में ले जाता है।
मैसेज ब्रॉडकास्ट करने के बजाय ब्रांड सही समय पर असली जरूरतों पर प्रतिक्रिया देते हैं। सवाल अब यह नहीं है कि "आप कितनी जगहों पर दिखाई दे रहे हैं?" बल्कि यह है कि "जब कोई समस्या आती है तो क्या आप काम आते हैं?"
यह बदलाव मार्केटिंग रणनीति से लेकर बिजनेस मॉडल तक सब कुछ बदल देता है। मैंने 2020 में इस बदलाव के बारे में लिखा था लेकिन AI ने इसे बहुत तेजी से आगे बढ़ाया है। जो ब्रांड इरादों को समझेंगे वहीं जीतेंगे। जो ब्रांड सिर्फ दिखाई पर निर्भर रहेंगे उन्हें मुश्किल होगी।
अपने पिछले कामों में आपने मांग-केंद्रीत विकास मॉडल पर जोर दिया था। आज AI इस विचार को कैसे बदल रहा है? आप यह तर्क क्यों देते हैं कि विभेदन से ज्यादा अहमियत प्रासंगिकता की है?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
पारंपरिक विकास मॉडल रेखिक था। ब्रांड्स जागरूकता जगाते थे, उपभोक्ताओं को सोचने-समझने में मददगार साबित होते थे और उन्हें खरीदारी के लिए प्रेरित करते थे। ब्रांड इस पूरी यात्रा को नियंत्रित करता था। मगर AI इस सीक्वेंस को तोड़ देता है। यह रियल टाइम में इरादे का पता लगाता है। यह समझता है कि कोई व्यक्ति अपने फैसले लेने की प्रक्रिया में कहां पर है और उसी हिसाब से जवाब देता है।
इसलिए विभेदन से पहले प्रासंगिकता आती है। एक ब्रांड को पहले क्वालिफाई करना होगा - क्या यह इस समय मायने रखता है? जब कोई जरूरत होगी तब क्या इसका इस्तेमाल किया जा सकता है?
मैं इसे एक पिरामिड की तरह सोचता हूं। आधार में कई कॉन्टेक्स्ट और पलों में प्रासंगिकता है। उसके ऊपर पहचान है : पहचाने जाने योग्य होना है। सबसे ऊपर विभेदन है : चुने जाना है। AI उन ब्रांड्स को ही रिवॉर्ड देता है जो रोजमर्रा की जिंदगी में, सिर्फ बिक्री के समय ही नहीं बल्कि हर जगह किसी महत्व के साथ मौजूद रहते हैं।
AI पर ज्यादातर चर्चा क्षमता पर आधारित होती है। क्या AI वास्तव में महत्व निर्धारण में मददगार होता है?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
क्षमता सिर्फ पहला अध्याय है। समय और रुपए बचाना जरूरी है लेकिन यह परिवर्तनकारी नहीं है। असली महत्व तब बनती है जब AI उपभोक्ताओं के सफर को आसान बना देता है। स्टेज मैनेज करने के बजाय ब्रांड सीधे समस्याओं को हल करते हैं। महत्व नतीजों में होता है प्रक्रिया में नहीं।
यह कमर्शियल रिश्तों को भी नया आकार देता है। एजेंसियों, प्लेटफार्म और सेवा प्रदाता को ज्यादातर मामलों में नतीजों के लिए पेमेंट किया जाएगा न कि गतिविधि के लिए। AI कोशिश को असर के साथ जोड़कर इस बदलाव को मुमकिन बनाता है। यहीं पर लंबे समय तक का महत्व बनता है।
2030 तक कौन से भारतीय सेक्टर वैश्विक AI की दौड़ में सबसे आगे रहेंगे?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
जो सेक्टर आगे बढ़ेंगे वे ऐसे होंगे जो तालमेल पर निर्भर करते हैं जैसे वित्त, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, ऊर्जा।
ये जटिल सिस्टम-हैवी इंडस्ट्रीज हैं जिनका ग्लोबल महत्व है। भारत अधिकांश समय अदृश्य तरीके से ही, पहले से ही इन्हें मैनेज करने में एक अहम भूमिका निभा रहा है। यह अदृश्यता एक फायदा है। आपको हमेशा सुर्खियों में रहने की जरूरत नहीं है। आपको बिना किसी रुकावट के इंटीग्रेट होने की जरूरत है। इंटरनेट क्रांति के विपरीत जिसने मीडिया और ई-कॉमर्स को फायदा पहुंचाया है AI बुनियादी इंडस्ट्रीज को बदल देगा। इन सेक्टरों में भारत का फायदा संरनात्मक है, अस्थायी नहीं।
आपने कहा है कि भारत आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खास तौर पर बहुत सही है। ऐसा क्या है जो इसे अलग बनाता है?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
पैमाना मदद करता है लेकिन यह मुख्य फायदा नहीं है। AI भारत को बिना किसी रुकावट के असाधारण विविधता, भाषाओं, संस्कृतियों और प्रक्रिया को इंटीग्रेट करने की सुविधा देता है। अनुवाद की बाधाएं खत्म हो जाती हैं। इससे भी जरूरी बात यह है कि भारत को सबसे ज्यादा इनोवेटिव या सबसे सस्ता होने की होड़ में शामिल होने की जरूरत नहीं है। उन लड़ाइयों से फायदा कम होता है। भारत की असली ताकत ऑर्केस्ट्रेशन को संभालने, ग्लोबल ऑपरेटिंग सिस्टम को मैनेज करने में है।
नवाचार शायद आकर्षक हो लेकिन आर्थिक शक्ति और मार्जिन ऑर्केस्ट्रेशन में ही होते हैं।
AI पूरी तरह से नई मांगों के लिए जगह कैसे बनाता है?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
पहले, मांगों के लिए जगह व्यक्तिगत सोच और दूरदर्शी आविष्कार से बनते थे। आज उन्हें सिस्टमैटिक तरीके से बनाया जाता है।
AI व्यवहार, डाटा और इरादे के जरिए अधूरी जरूरतों को पहचानता है। मांग पैटर्न से उभरती है न कि सहज-ज्ञान से। यह एंटरप्रेन्योरियल आविष्कारों से बाजारों के एल्गोरिद्मिक बनावट में एक बदलाव है।
आगे रहने के लिए भारतीय CEO और CMO को किस तरह की सोच अपनानी चाहिए?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
पुरानी सोच में खर्च को विकास के बराबर माना जाता था ज्यादा रुपए खर्च करने का मतलब था ज्यादा ध्यान और ज्यादा रिटर्न।
अब यह सोच काम नहीं करती। नई सोच नेटवर्क, डाटा और AI के जरिए तेजी से विकास पर केंद्रीत है। लीडर्स को इन्वेंट-एंड-प्रमोट सोच से हटकर ऑर्केस्ट्रेट-एंड-स्केल सोच अपनानी होगी। यह पहले कुछ बनाने और फिर ध्यान खरीदने के बारे में नहीं है। यह AI का इस्तेमाल करके उन फायदों को अनलॉक करने के बारे में है जो पहले से मौजूद हैं।
क्या AI छोटे ब्रांड्स के लिए बराबरी का मौका देता है?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
हां बिल्कुल। आकर्षण अर्थव्यवस्था में साइज ही सब कुछ था। इरादातन अर्थव्यवस्था में समझदारी भरे एक्शन ज्यादा मायने रखते हैं।
AI छोटे ब्रांड्स को डाटा और नेटवर्क इफेक्ट्स के ज़रिए तेजी से आगे बढ़ने में मदद करता है। बड़े ब्रांड्स के पास अभी भी फायदे हैं लेकिन छोटे ब्रांड्स को इस बदलाव से आनुपातिक रूप से ज्यादा फायदा होता है।
सबसे आखिरी सवाल, जैसे-जैसे हम साल 2026 की ओर बढ़ रहे हैं, आप AI अपनाने में किस तरह की प्रगति की उम्मीद करते हैं?
डॉ. एरिक जोआचिमस्थेलर :
अगर आपने यह सवाल तीन साल पहले पूछा होता तो कोई भी आज की सच्चाई का अंदाजा नहीं लगा सकता था। बड़े भाषाई मॉडल अब काफी अच्छे हैं। अगला चरण एप्लीकेशन और ऑर्केस्ट्रेशन है। अगले दो से तीन साल निर्णायक होंगे। एक रीसेट होगा, प्रचार कम होगी लेकिन भारत की तरक्की धीमी नहीं होगी। AI टूल्स से सिस्टम की ओर बढ़ रहा है और यह भारत की ताकतों के साथ पूरी तरह से मेल खाता है।