महिषासुर के अलावा इन असुरों का भी वध की थीं मां दुर्गा, जानिए पुराण की गाथा

शारदीय दुर्गोत्सव शुरू हो चुका है। इस समय जानें कि महिषासुर के अलावा और किन असुरों का नाश देवी दुर्गा के हाथों हुई है।

By श्रमना गोस्वामी, Posted by: लखन भारती

Sep 28, 2025 13:24 IST

देवी दुर्गा का एक और नाम महिषासुरमर्दिनी है। क्योंकि ब्रह्मा की कृपा पाकर अत्यंत शक्तिशाली अत्याचारी राक्षस महिषासुर का उन्होंने वध किया था। इसलिए दुर्गा पूजा असुर शक्तियों का नाश करके शुभ शक्तियों की जय का उत्सव है।

यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज दुर्गापूजा बंगालियों का जीवन उत्सव है। पूजा के कुछ दिन पहले से ही पूरा राज्य प्रकाश की माला से सज उठते हैं। यह दुर्गोत्सव पश्चिम बंगाल में ही नहीं बल्कि अन्य विभिन्न स्थानों पर भी आयोजित होते हैं। देवी के हाथ के त्रिशूल से रक्तरंजित महिषासुर के शरीर पर प्रतीकात्मकता दिखाई देती है। इसी रूप में देवी को हम देखते आए हैं लेकिन महिषासुर अकेला नहीं है, शक्ति रूपिणी दुर्गा के हाथों और भी कई असुरों का वध हुआ है। जानिए इन सभी असुरों के बारे में।


मधु और कैटभ

महिषासुर से भी पहले माँ दुर्गा के हाथों मधु और कैटभ नामक दो असुर मारे गए। भागवत पुराण के अनुसार, विष्णु के दोनों कानों में जमे मैल से ये दोनों असुर उत्पन्न हुए। अत्यंत महत्त्वाकांक्षी और अत्याचारी मधु और कैटभ ने ब्रह्मा से वेद हरण कर लिया। उनके साथ हजारों वर्षों तक युद्ध करने के बावजूद स्वयं विष्णु इन्हें पराजित नहीं कर सके। तब आदिशक्ति महामाया के रूप में दुर्गा अवतरित हुईं। यहाँ देवी ने स्वयं अस्त्र लेकर मधु और कैटभ का वध नहीं किया। उन्होंने इन दोनों असुरों के सामने मायाजाल फैलाकर उनके वध के रास्ते को सरल कर दिया।


रक्तबीजमाँ दुर्गा के शत्रुओं में सबसे भयानक है रक्तबीज। ब्रह्मा की माला में रक्तबीज का एक बूंद रक्त जब भी जमीन पर गिरता है, वहां से हजारों रक्तबीज उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए दुर्गा जब एक रक्तबीज का वध करती हैं, तो उसके रक्त से अनगिनत रक्तबीज उत्पन्न होने लगते हैं। तब दुर्गा अपनी शक्ति से देवी काली को उत्पन्न करती हैं। रक्तबीज का रक्त जमीन पर गिरने से पहले ही काली उसे पी जाती हैं। इस प्रकार महिला शक्ति का विनाशकारी रूप प्रस्तुत किया गया है।

शुंभ और निशुंभशुंभ और निशुंभ नामक दो असुरों ने तपस्या करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया। ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि कोई भी देवता, मनुष्य या दानव उन्हें मार नहीं सकेगा। ब्रह्मा के वरदान से बलशाली होकर वे स्वर्ग और पृथ्वी में भयावह अत्याचार शुरू कर देते हैं। वे स्वर्ग पर अधिकार कर देवताओं को वहां से भगा देते हैं। तब देवताओं की प्रार्थना पर दुर्गा अवतरित होती हैं। उनकी रूप में मोहित होकर चण्ड और मुण्ड नामक शुंभ निशुंभ के दो अनुचर जाकर उन्हें खबर देते हैं। देवी को पकड़ लाने के लिए धूम्रलोचन नामक एक असुर को भेजा जाता है। देवी उसे छल से मार देती हैं, तब शुंभ और निशुंभ स्वयं आते हैं। पहले निशुंभ और बाद में शुंभ के स्तनों में त्रिशूल गाड़कर दुर्गा उनका वध करती हैं।

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