आज उमा के विदाई की दशमी है। चार दिन के उत्सव के बाद दुर्गा कैलाश लौट रही हैं। इसलिए बंगालियों का आज मन उदास है। हमारे यहाँ इसे विजयादशमी कहते हैं, वहीं उत्तर भारत में इसे दशहरा के रूप में मनाया जाता है। रामायण के अनुसार अश्विन शुक्ला दशमी तिथि को ही रावण का वध रामचंद्र ने किया था। रावण वध के प्रतीक के रूप में ही इस दिन दशहरा मनाया जाता है।
रावण राम का परम शत्रु था। अधर्मी शक्ति का विनाश और शुभ शक्ति की विजय का प्रतीक है विजय दशमी या दशहरा। दशानन रावण का वध करके धर्म और न्याय की स्थापना राम ने की। रावण अधर्मी शक्ति का प्रतीक होते हुए भी महाज्ञानी और महान वीर थे। इस कारण जब रावण मृत्यु शय्या में था, तब राम ने लक्ष्मण को रावण के पास भेजा। जीवन की शिक्षा रावण से बेहतर कोई और नहीं दे सकता, ऐसा राम ने बताया।
रावण अत्यंत अहंकारी थे। उनका अहंकार उन्हें भले और बुरे के बीच फर्क करना भूलवा देता था। इसी वजह से उन्होंने सीता का हरण करके जो अत्याचार किया, उसे वे समझना नहीं चाहते थे लेकिन इसके बावजूद सत्य यह है कि रावण एक महान पंडित थे। उन्हें मारने के बावजूद रावण की विद्वता के सामने स्वयं श्रीरामचंद्र भी सिर झुकाते थे। रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ और सर्वशास्त्रज्ञ थे। इसी कारण मृत्युपथ पर चल रहे रावण से जीवन का ज्ञान लेने के लिए लक्ष्मण को श्रीराम ने सलाह दी।
बड़े भाई राम की यह सलाह सुनकर पहले तो लक्ष्मण आश्चर्यचकित हो गए। वे राम से जानना चाहते हैं कि परम शत्रु रावण से वे जीवन का ज्ञान क्यों लेने जाएँ। राम उन्हें बताते हैं कि राजनीति, दर्शन और शास्त्रों के महान पंडित रावण लक्ष्मण को जीवन का वह ज्ञान दे सकते हैं जो किसी और से संभव नहीं। राम की बात सुनकर लक्ष्मण मृत्युपथ पर चल रहे रावण के पास जाते हैं लेकिन पहले रावण के पास जाकर उनके पैरों के पास खड़े होकर जीवन का ज्ञान मांगना चाहते हैं। तब रावण उन्हें कुछ नहीं कहते। तब रामचंद्र लक्ष्मण को समझाते हैं कि ज्ञान प्रार्थना करने के लिए सिर के पास नहीं बल्कि पैरों के पास जाकर बैठना चाहिए।
जानें लक्ष्मण को क्या ज्ञान मृत्यु पथ यात्री रावण ने दिया था समय का महत्व रावण ने लक्ष्मण से कहा कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज समय है। किसी अच्छे काम को करने के लिए उचित समय का इंतजार करने के लिए लक्ष्मण को मना किया। क्योंकि हम कभी नहीं जानते कि हमारे जीवन में अंतिम समय कब आएगा। अक्सर हम आलस्य करके काम को टाल देते हैं। इसी कारण कई कामों को हम पूरा नहीं कर पाते। किसी को कमजोर मत समझो, अपने दुश्मन को कमजोर समझने की भूल कभी नहीं करनी चाहिए, यह सलाह रावण ने लक्ष्मण को दी। इस मामले में उन्होंने अपने उदाहरण का हवाला दिया। पहले उन्होंने वानर सेना के साथ लंका पर हमला करने आए राम और लक्ष्मण को कमजोर समझा था। और यही गलती उनके लिए घातक साबित हुई।
रहस्य को गुप्त रखोलक्ष्मण को दी गई जीवन की अंतिम शिक्षा में रावण कहते हैं कि यदि जीवन में कोई रहस्य है, तो उसे अवश्य ही गुप्त ही रखना चाहिए। क्योंकि एक बार रहस्य सबके सामने प्रकट हो जाने पर यह बुरा प्रभाव ला सकता है। उनके अमृतकुंड का रहस्य प्रकट होने के तुरंत बाद उनकी मृत्यु हो गई। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के आशीर्वाद से रावण की नाभी के नीचे अमृतकुंड छिपा था। इस अमृतकुंड को नष्ट किए बिना रावण का वध करना संभव नहीं था। युद्ध के समय राम लगातार तीर चलाते जाते हैं और रावण का सिर काटते जाते हैं लेकिन तुरंत ही एक और सिर उसके गले पर आकर बैठ जाता है। जब रामचंद्र यह सोचने में असमर्थ थे कि रावण को कैसे मारा जा सकता है, तब विभीषण उन्हें रावण के अमृतकुंड का रहस्य बताते हैं। इसके बाद राम पहले तीर मारकर रावण के अमृतकुंड को नष्ट करते हैं। फिर दूसरे तीर से उसे मारते हैं। क्योंकि विभीषण को यह रहस्य पता था, इसलिए रावण को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस कारण रावण कभी भी अपने रहस्य को किसी से कहने की अनुमति नहीं देते थे।