बांग्लादेश में तीन महीने से अधिक समय तक बंदी रहना पड़ा। अत्याचार सहन करना पड़ा, ऐसा आरोप है। अंततः काकद्वीप के 47 मछुआरे घर लौट आए। बुधवार को फ्रेजरगंज मछली बंदरगाह पर भारतीय कोस्ट गार्ड के अधिकारियों की उपस्थिति में उन्हें सौंपा गया। भारत की ओर से इस दिन 32 बंग्लादेशी मछुआरों को उनके प्रतिनिधियों के हाथों सौंपा गया।
वापस लौटे मछुआरों की आंखों और चेहरे पर अभी भी आतंक की छाप है। लंबे चार महीनों तक उनके परिवार के सदस्य इंतजार कर रहे थे अपने प्रियजन को एक झलक देखने के लिए। मछुआरों के मुताबिक, 'हाथ-पैर बांधकर घंटों तक बार-बार मारपीट की जाती थी। ठीक से भोजन नहीं दिया जाता था।' 'पारमिता' ट्रॉलर के मछुआरों ने बताया कि खराब मौसम के कारण उनकी नाव बांग्लादेश की जल सीमा में बह गई थी। इसके बाद बांग्लादेश कोस्टगार्ड ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। आरोप है कि गिरफ्तारी के बाद से ही शारीरिक और मानसिक अत्याचार शुरू हो गया।
सुंदरबन समुद्री मछुआरा मजदूर संघ के सचिव सतीनाथ पात्र कहते हैं, ‘कुल 48 मछुआरों को बंदी बनाया गया था। जेल में बाबुल दास नामक एक मछुआरे की जान चली गई। बाकी 47 आज लौट आए हैं।…आशा है कि इस देश की ट्रॉलरों के उनके इलाके में प्रवेश करने की घटनाएं भविष्य में कम होंगी।’
एक मछुआरे की पत्नी जुई दे ने कहा, 'इन तीन महीनों का हम कैसे सामना कर पाए, यह बताना मुश्किल है। हमेशा एक डर का एहसास रहता था। आज वह लौट आए हैं, इसके लिए ही हम खुश हैं।' उल्लेखनीय है कि इलीश की तलाश में समुद्र में जाने के दौरान तीन ट्रॉलरों पर अंतरराष्ट्रीय जल सीमा पार करने का आरोप लगा था। 'पार्मिता', 'झड़' और 'मंगलचंडी' नामक तीन ट्रॉलरों के मछुआरों को गिरफ्तार किया गया।