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SIR सुनवाई का साइड इफेक्टः डॉक्टर चेंबर से बाहर, अस्पतालों में इंतज़ार करती ज़िंदगियां

डॉक्टरों की अनिवार्य मौजूदगी से ओपीडी और सर्जरी शेड्यूल प्रभावित। चुनाव आयोग की प्रक्रिया से आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं पर असर।

By अनिर्बान घोष, Posted by: श्वेता सिंह

Dec 31, 2025 09:55 IST

कोलकाताः कोलकाता में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया के तहत जारी सुनवाइयों ने इस बार चिकित्सा सेवाओं को भी प्रभावित किया है। आपातकालीन और सुपर-स्पेशियलिटी से जुड़े कई वरिष्ठ डॉक्टरों को अपनी ओपीडी, सर्जरी और पहले से तय अपॉइंटमेंट रद्द कर SIR की सुनवाई में शामिल होना पड़ा, जिससे बड़ी संख्या में मरीजों को बिना इलाज लौटना पड़ा।

पूर्वी भारत का पहला हार्ट ट्रांसप्लांट करने वाले प्रसिद्ध कार्डियक सर्जन डॉ. तपस रायचौधुरी को हाल ही में एक जटिल हार्ट सर्जरी और कई गंभीर मरीजों की अपॉइंटमेंट रद्द करनी पड़ी। वजह-SIR की सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना। उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह सवाल उठाया कि यदि उनकी अनुपस्थिति में किसी मरीज की हालत बिगड़ती है, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा।

इसी तरह, बुधवार को शहर के जाने-माने न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अनिमेष कर को भी SIR सुनवाई के चलते अपने मरीजों को लौटाना पड़ा। उनके कई मरीज चलने-फिरने में असमर्थ हैं और दूर-दराज के जिलों से इलाज के लिए आते हैं। पहले से तय अपॉइंटमेंट के बावजूद, सुनवाई में दो-तीन घंटे देने की मजबूरी ने मरीजों की परेशानी और बढ़ा दी।

चिकित्सकों के एक वर्ग का कहना है कि सुपर-स्पेशियलिटी डॉक्टरों की संख्या पहले से ही सीमित है और उन पर इलाज का दबाव अधिक रहता है। ऐसे में कार्यदिवस के महत्वपूर्ण घंटे प्रशासनिक प्रक्रिया में खर्च होने का सीधा असर मरीजों की सेहत पर पड़ता है। उनका सवाल है कि क्या SIR जैसी प्रक्रिया में आपातकालीन सेवाओं से जुड़े पेशेवरों के लिए कोई वैकल्पिक या विशेष व्यवस्था नहीं हो सकती थी।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की राज्य इकाई ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है। संगठन का कहना है कि वरिष्ठ डॉक्टरों को लंबे समय तक सुनवाई में खड़ा रहना पड़ रहा है, जबकि उसी समय अस्पतालों में गंभीर मरीज इलाज का इंतज़ार कर रहे हैं। डॉक्टर संगठनों के अनुसार, यह समस्या सिर्फ चिकित्सकों तक सीमित नहीं है, बल्कि नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, सुरक्षा कर्मी, पुलिस और सेना जैसे जरूरी सेवाओं से जुड़े लोगों के लिए भी वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए।

वहीं, चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि सुनवाई की तारीख बदलने का विकल्प मौजूद है। इसके लिए बीएलओ के माध्यम से ईआरओ से संपर्क किया जा सकता है। हालांकि, अंतिम फैसला ईआरओ की सहमति पर निर्भर करता है। कई डॉक्टरों का दावा है कि उन्हें इस तरह के विकल्प की स्पष्ट जानकारी पहले नहीं दी गई।

पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह बहस तेज कर दी है कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं और आवश्यक सेवाओं के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए, ताकि नागरिकों के अधिकारों के साथ-साथ मरीजों की जान भी सुरक्षित रह सके।

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