एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिविजन) की समयसीमा बढ़ाने के बाद भी निर्वाचन आयोग विपक्ष के निशाने पर है। समय बढ़ने को अपनी जीत बताते हुए भी तृणमूल कांग्रेस का सवाल है कि पिछले कुछ हफ्तों में ‘सार/SIR’ प्रक्रिया की वजह से पश्चिम बंगाल में 40 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? पीएम और कांग्रेस ने भी आयोग पर एक साथ हमला किया है। बंगाल में समयसीमा बढ़ाने के बावजूद बीजेपी भी आयोग की भूमिका से पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिख रही है। इसी बीच आयोग ने अपने एक्स हैंडल से एक वीडियो जारी किया जिसमें केरल में बीएलओ के "स्ट्रेस रिलीफ प्रोग्राम" में मुख्य निर्वाचन अधिकारी और जिला अधिकारी “ए क्विक ब्रेक, ए स्ट्रॉन्ग टीम” इस संदेश के साथ नाचते दिख रहे हैं।
तृणमूल का कहना है कि समयसीमा बढ़ाना दरअसल आयोग की अपनी गलती को स्वीकारना है। लेकिन उनका दावा है कि सिर्फ एक हफ्ता बढ़ाना पर्याप्त नहीं है। तृणमूल का बड़ा सवाल है कि कम समय में प्रक्रिया पूरी करने की जल्दबाजी से जो डर, तनाव फैला और 40 से अधिक बीएलओ व लोगों की मौत हुई उसका जिम्मेदार कौन?
बीजेपी भी कह रही है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त को खुद राज्य आकर देखना चाहिए कि SIR की प्रक्रिया कैसे चल रही है। सीपीएम और कांग्रेस का आरोप है कि आयोग बीजेपी के एजेंडे पर चल रहा है और तैयारी के बिना काम शुरू कर बैठा है। कांग्रेस का कहना है कि कम से कम एक महीना और बढ़ाना चाहिए।
बैरकपुर से सांसद पार्थ भौमिक का कहना है कि बीएलओ को सही ट्रेनिंग नहीं दी गई, ऐप की खराबी, इंटरनेट की व्यवस्था और मतदाता सूची में कहां-कहां गलतियां हैं यह जांच भी नहीं की गई। फिर भी यह पूरी प्रक्रिया लोगों पर थोप दी गई। लोग आखिर बार-बार लाइन में क्यों लगेंगे? वे कहते हैं कि नोटबंदी के समय कहा गया था कि काला धन खत्म हो जाएगा लेकिन क्या हुआ? संविधान की धारा 370 हटाते समय कहा गया था कि आतंकवाद खत्म हो जाएगा तो फिर पहलगाम में बहनों का सिंदूर क्यों मिटा?
बीजेपी के राज्य नेतृत्व ने आयोग द्वारा समयसीमा बढ़ाने के फैसले का स्वागत किया है लेकिन वे भी पूरी तरह खुश नहीं हैं। बीजेपी के राज्य अध्यक्ष शमीक भट्टाचार्य का कहना है कि एक सप्ताह समय बढ़ना ठीक है इससे ऑब्जर्वर बेहतर तरीके से काम कर सकेंगे और जांच भी हो सकेगी। लेकिन वे मांग करते हैं कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार खुद अपनी टीम के साथ बंगाल आकर देखें कि ‘सार/SIR’ का काम कैसा चल रहा है। उनका कहना है कि जरूरत पड़े तो दिल्ली में जो नेता विरोध कर रहे उन्हें भी यहां लाकर दिखाया जाए कि कैसे कहीं दामाद को पिता बना दिया गया है, कहीं पिता को ससुर; किसी के तीन बच्चे थे और रातोंरात सूची में आठ बच्चे दिख रहे हैं। इस तरह की गड़बड़ियां कैसे चल रही हैं।
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार कहते हैं कि ममता बनर्जी ने दो साल का समय मांगा था यहां सिर्फ एक सप्ताह बढ़ाया गया है। उन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं है। सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं कि निर्वाचन आयोग को मान लेना चाहिए कि वह अयोग्य, असफल और तैयार नहीं है। पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी बीएलओ और आम लोगों की मौतें हुई हैं। लोग भ्रमित और परेशान हैं। आयोग बीजेपी के एजेंडे पर चलकर खुद को संकट में डाल रहा है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शुभंकर सरकार की मांग है कि एन्यूमरेशन (गणना) की समयसीमा कम से कम एक महीना बढ़ाई जाए। एसयूसीआई (सी) के राज्य सचिव चंडीदास भट्टाचार्य का कहना है कि की एसआईआर समयसीमा एक सप्ताह बढ़ाना ही यह दिखाने के लिए काफी है कि निर्वाचन आयोग ने बिना योजना और बिना तैयारी के इस प्रक्रिया की शुरुआत की थी।