राज्यपाल द्वारा बाली नगर पालिका को हावड़ा नगर निगम से अलग करने की मांग को मंजूरी दिए हुए कई महीने बीत चुके हैं। लेकिन वहां की आम जनता यह सवाल उठा रही है कि दोनों नगर पालिकाओं में अब तक चुनाव कराने की कोई पहल क्यों नहीं की गई। हालांकि हावड़ा नगर निगम के प्रशासक मंडल के कार्यकारी अध्यक्ष सुजॉय चक्रवर्ती ने यह मामला राज्य चुनाव आयोग पर छोड़ दिया है, लेकिन विपक्ष का इस पर अलग ही रुख है।
उनका कहना है कि राज्यपाल ने हावड़ा के 5 वार्ड और बाली के 35 वार्डों के लिए हावड़ा नगर निगम संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस बीच, मंजूरी का इंतजार किए बिना ही बाली में पिछले करीब 4 सालों से एक अलग नगर पालिका के तौर पर काम चल रहा है। इस दौरान हावड़ा नगर निगम के 50 वार्डों का पुनर्गठन करके 66 वार्ड भी बनाए गए। विपक्ष का आरोप है कि पुनर्गठन प्रक्रिया में परंपरा के अनुसार कोई नागरिक सुनवाई नहीं हुई। विपक्ष के साथ भी कोई बात नहीं की गई। इसलिए उनका कहना है कि पुनर्गठन रद्द किए बिना चुनाव कराना संभव नहीं है।
इस बीच राजनीतिक गलियारों में बाली को पहले हावड़ा में मिलाने और फिर उसे अलग करने के इन दोनों कदमों को एक तरह से तुगलकी फरमान के तौर पर देखा जा रहा है। बाली को हावड़ा में मिलाने का एक कारण ग्रेटर हावड़ा नगर निगम का गठन था, जिसमें सौ से ज्यादा वार्ड होने थे। अगर ग्रेटर हावड़ा नगर निगम बनता, तो उस ग्रेटर हावड़ा नगर निगम को विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों से वित्तीय अनुदान और ऋण के रूप में कई लाभ मिल सकते थे। इससे हावड़ा शहर और बाली तथा आसपास के उन इलाकों का व्यापक विकास संभव होता, जो अब वास्तव में शहर बन गए हैं।
लेकिन असलीयत में ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि हावड़ा नगर निगम संशोधन विधेयक पर राज्य और राज्यपाल के बीच टकराव के कारण दोनों नगर पालिकाओं के लोगों का निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से अपने नगर निगम बोर्ड चुनने का अधिकार ही पिछले कई सालों से अधर में लटका हुआ है। कभी लोकसभा, कभी विधानसभा तो कभी पंचायत चुनाव के नाम पर हावड़ा और बाली के चुनावों का मुद्दा टाला जा रहा है।
इस बारे में भाजपा नेता उमेश राय का आरोप है कि राज्यपाल कुछ प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर चाहते थे। वह जानना चाहते थे कि बाली को हावड़ा से फिर से अलग क्यों किया जा रहा है? लेकिन उन्हें इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि बाली के 16 वार्डों को 35 वार्डों में विभाजित करने या हावड़ा के 50 वार्डों को 66 वार्डों में विभाजित करने में किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया। इसमें कई विसंगतियां भी हैं। विपक्ष ने कटाक्ष करते हुए कहा कि मौजूदा सत्तारूढ़ पार्टी के लिए नगर निगम चुनाव कराना संभव नहीं है।
क्यों? क्योंकि अब हावड़ा नगर निगम संशोधन अधिनियम के अनुसार, हावड़ा के 50 वार्डों में चुनाव कराने होंगे। लेकिन पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, तृणमूल पार्टी स्तर पर 66 वार्डों के लिए 5 उम्मीदवारों की सूची तैयार की गई है। नतीजतन, इतने सारे उम्मीदवारों को सूची में जगह देने में दिक्कत आ रही है। अब 50 वार्डों के लिए मतदान करवाने की बात पर पार्टी के अंदर ही काफी तनाव पैदा हो जाता है।
बाली के मामले में भी वार्ड पुनर्गठन में अनियमितता और विसंगतियां तथा चार वर्षों तक नगरपालिका प्रशासन के अनाधिकृत संचालन के आरोप हैं। उस दौरान, 2015-2018 के बीच, पार्टी नेता 16 पार्षदों के बीच समिति के अध्यक्ष के चुनाव और नगर समिति के गठन में मेयर परिषद के नाम को लेकर हुए संघर्ष को सुलझा नहीं सका। परिणामस्वरूप, बाली को फिर से अलग करना पड़ा, ताकि कम से कम जब वार्डों की संख्या बढ़े और बाली के मतदान के बाद नगरपालिका बोर्ड का गठन हो, तो पार्टी नेताओं में से अधिक पदाधिकारियों की नियुक्ति संभव हो सके। विपक्ष का आरोप हैं कि पार्टी संघर्ष को सुलझाने में हावड़ा शहर और बाली के विकास को एक बड़ा झटका लगा है।