देहरादून : इस वर्ष केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद उत्तराखंड प्रशासन ने आकलन किया। आंकड़ों से पता चला कि 2025 में लगभग 17 लाख 68 हजार श्रद्धालुओं ने केदारनाथ मंदिर के दर्शन किए, जो पिछले कुछ वर्षों की तुलना में काफी अधिक है। इसके साथ ही एक बेहद चिंताजनक तथ्य भी सामने आया है। सरकारी हिसाब के अनुसार मंदिर और द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान शिव के दर्शन कर लौटते समय श्रद्धालुओं द्वारा आसपास जो कचरा छोड़ा गया उसकी मात्रा पहले कभी नहीं देखी गई। इस वर्ष कुल 2,324 टन कचरा केदारनाथ क्षेत्र में फैलाया गया।
अक्टूबर में मंदिर के कपाट बंद होने के बाद स्थानीय प्रशासन ने तेजी से सफाई अभियान शुरू किया। मंदिर से कई किलोमीटर दूर तक बिखरे कचरे को इकट्ठा करने में लगभग एक महीना लग गया। इस दौरान पर्यावरणविदों की एक टीम ने क्षेत्र का दौरा कर कचरे की प्रकृति का अध्ययन किया। वहां फटे जूते, छोड़े गए बैग, खाने के पैकेट और प्लास्टिक की बोतलें बड़ी मात्रा में पाई गईं। विशेषज्ञों के प्रारंभिक अनुमान के अनुसार इस साल केदारनाथ में करीब 100 टन प्लास्टिक कचरा और 2,300 टन से अधिक अन्य ठोस अपशिष्ट (सॉलिड वेस्ट) फैलाया गया। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2024 की तुलना में 2025 में प्रति श्रद्धालु औसतन 150 ग्राम अधिक कचरा छोड़ा गया है।
श्रद्धालुओं द्वारा छोड़ा गया यह कचरा हिमालय के अत्यंत संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त है। पहले ही गढ़वाल हिमालय में बड़े पैमाने पर जंगल काटकर चौड़े हाईवे बनाए गए हैं जिससे पर्यावरणीय और भू-आकृतिक संतुलन बिगड़ा है। अब इसके साथ पुण्य कमाने का बोझ भी जुड़ गया है। स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि हिमालय के दक्षिणी ढलान का पारिस्थितिकी तंत्र इतना नाजुक है कि वहां न तो कचरा जलाने की अनुमति है और न ही प्लास्टिक डिस्पोजेबल प्लांट लगाने की।
हालांकि कागजों में चारधाम यात्रा के दौरान प्लास्टिक सामग्री ले जाने पर प्रतिबंध है लेकिन प्रशासन इसे प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहा। नतीजतन श्रद्धालुओं की संख्या के साथ-साथ कचरे की मात्रा भी बढ़ती चली गई जिससे पर्यावरणविदों की चिंता और गहरी हो गई है।
प्रशासन का कहना है कि कचरा हटाने में सबसे बड़ी बाधा क्षेत्र की दुर्गम पहाड़ी भौगोलिक स्थिति और मशीनों के इस्तेमाल की सीमाएं हैं। केदारनाथ क्षेत्र में जमा पूरा कचरा स्थानीय लोगों के पालतू खच्चरों की मदद से ढोया जा रहा है। दुर्गम इलाकों में एक खच्चर एक बार में केवल 10–12 किलो कचरा ही ले जा सकता है। पूरे क्षेत्र को कचरा-मुक्त करने में लगभग 25 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। पर्यावरणविदों की मांग है कि क्षेत्र में कचरा प्रबंधन के लिए सख्त नियम तुरंत लागू किए जाएं।