जवानों, आज खत्म कर दो इनको, गंभीर रूप से घायल बीएसएफ उपनिरीक्षक मोहम्मद इम्तियाज ने ‘ ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तानी ड्रोनों के खिलाफ प्रभावी जवाबी कार्रवाई के लिए अपने जवानों को प्रेरित करते हुए यह उद्घोष किया था। इस ऑपरेशन के दौरान उपनिरीक्षक इम्तियाज ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उपनिरीक्षक इम्तियाज को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की सातवीं बटालियन के आरक्षी दीपक चिंगाखम के साथ इस वीरतापूर्ण कार्य के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
चार अक्टूबर को जारी एक सरकारी राजपत्र में 10 मई को जम्मू स्थित सीमा चौकी (बीओपी) खारकोला पर किए गए उनके साहस की कहानी दर्ज है। इस पदक की घोषणा अगस्त में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर की गई थी। सशस्त्र बलों द्वारा बीएसएफ के साथ मिलकर शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के तहत, भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में सात से 10 मई तक पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकवादी हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे।
ड्रोन पर लगातार की फायरिंग
बीएसएफ चौकी पर सीमा पार से ‘तीव्र’ मोर्टार गोलाबारी और ‘हवाई खतरा’ (ड्रोन हमला) था। उपनिरीक्षक इम्तियाज ने चतुराई से अपने बंकर से बाहर निकलकर एक ड्रोन को निष्क्रिय करने के लिए ‘लाइट मशीन गन (एलएमजी)’ का इस्तेमाल किया। आरक्षी चिंगाखम ने अपनी एलएमजी से दूसरे ड्रोन को निशाना बनाया। इसके तुरंत बाद, सीमा पार से दागा गया एक मोर्टार गोला 'मोर्चे' (संतरी चौकी) के पास फट गया, जिससे दोनों जवान गंभीर रूप से घायल हो गए।
सीने में लगे छर्रे, पैर की हड्डी टूटी
उपनिरीक्षक मोहम्मद इम्तियाज के प्रशस्ति पत्र में लिखा हुआ है, उपनरीक्षक इम्तियाज मोर्चे पर नेतृत्व करते हुए, गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनमें उनके हाथ-पैर टूट गए, पेट में चोट लगी और गर्दन एवं बांहों पर छर्रे के गंभीर घाव शामिल थे। इसमें लिखा है अपनी गंभीर हालत के बावजूद, उन्होंने आदेश देना और अपने जवानों को प्रेरित करना जारी रखा, और कहा: 'जवानों, आज खत्म कर दो इनको।’ और इसके बाद उन्होंने कर्तव्य निभाते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। आरक्षी चिंगाखम को भी सीने में कई छर्रे लगे और पैर की हड्डी टूट गई, लेकिन उन्होंने वहां से निकलने से इनकार कर दिया।
चिंगाखम अपने साथी को छोड़ने को तैयार नहीं थे और अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे तथा सर्वोच्च बलिदान दिया। दोनों सैनिकों को उनकी ‘असाधारण वीरता और साहस’ के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो एक युद्धकालीन पदक है और परमवीर चक्र एवं कीर्ति चक्र के बाद तीसरा सर्वोच्च सम्मान है।