नालंदाः वरिष्ठ कांग्रेस नेता और प्रख्यात लेखक शशि थरूर ने कहा है कि भारत को वैश्विक शिक्षा केंद्र बनने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है। उन्होंने विश्वविद्यालयों की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत की कमजोर स्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा कि “अवास्तविक वैश्विक आकांक्षाएं, स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थानों में बुनियादी निवेश का विकल्प नहीं हो सकतीं।”
नालंदा साहित्य महोत्सव में रखे विचार
थरूर बिहार में आयोजित नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान साहित्य पर आधारित एक संवाद सत्र में बोल रहे थे। इस सत्र में उनके साथ प्रो. सचिन चतुर्वेदी भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि आज भारत में दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से कोई भी शामिल नहीं है। “हालांकि कुछ भारतीय विश्वविद्यालय अब शीर्ष 200 में जगह बना पाए हैं, लेकिन टॉप 10 या टॉप 50 में अभी भी कोई भारतीय संस्थान नहीं है,” थरूर ने कहा।
नालंदा विश्वविद्यालय: गौरवशाली विरासत का प्रतीक
थरूर ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार का स्वागत करते हुए इसे भारत की सभ्यतागत विरासत का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि प्राचीन नालंदा महाविहार दुनिया का अग्रणी शिक्षण संस्थान था-सिर्फ इसलिए नहीं कि प्रतिस्पर्धा कम थी, बल्कि इसलिए कि वह वास्तव में एक असाधारण संस्था थी।
उन्होंने इसे “महान संतोष का विषय” बताया कि करीब 800 वर्षों बाद, 1200 ईस्वी के आसपास बख्तियार खिलजी द्वारा किए गए विनाश के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित किया गया।
कभी दुनिया भर से आते थे छात्र
थरूर ने कहा कि प्राचीन नालंदा में तुर्किये और फारस से लेकर थाईलैंड और जापान तक के छात्र अध्ययन के लिए आते थे। इसके विपरीत, आज भारतीय विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों की हिस्सेदारी घट रही है जो चिंता का विषय है। पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) पर बोलते हुए थरूर ने कहा कि इसके निर्माण में व्यापक परामर्श हुआ, हालांकि यह पूरी तरह संरचित प्रक्रिया नहीं थी। उन्होंने बताया कि ड्राफ्ट साझा किए जाने के बाद उनके कई सुझाव और आपत्तियां शामिल की गईं।
हालांकि, उन्होंने चेताया कि एनईपी के त्वरित प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं आंकना चाहिए, खासकर वैश्विक शैक्षणिक स्थिति के संदर्भ में।
स्कूली शिक्षा में संसाधनों की कमी
थरूर ने स्कूल स्तर पर नीति के परिणामों को लेकर ज्यादा आलोचनात्मक रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि संसाधनों की कमी इसकी सबसे बड़ी बाधा है। भारत दशकों से शिक्षा पर जीडीपी का 3.6 प्रतिशत खर्च करने की बात करता रहा है लेकिन फिलहाल खर्च 2 प्रतिशत से थोड़ा ही अधिक है।
शोध में भी भारत पीछे
थरूर ने कहा कि भारत के पास दुनिया की 17 प्रतिशत बौद्धिक प्रतिभा है लेकिन वैश्विक शोध उत्पादन में उसका योगदान केवल 2.7 प्रतिशत है। उन्होंने OECD देशों का हवाला देते हुए कहा कि वहां 75–80 प्रतिशत शोध फंडिंग निजी क्षेत्र से आती है, जबकि भारत में निजी क्षेत्र शोध पर निवेश करने से कतराता है।
शशि थरूर के अनुसार, भारत के पास अपार प्रतिभा और गौरवशाली विरासत है लेकिन यदि शिक्षा में पर्याप्त निवेश, शोध को बढ़ावा और बुनियादी ढांचे को मजबूत नहीं किया गया तो वैश्विक शिक्षा नेतृत्व केवल एक सपना बनकर रह जाएगा।