तीन साल में न्यायिक प्रक्रिया पूरी करनी ही होगी! शाह के दावे पर संदेह

देश के उच्च और निचली अदालतों में मिलाकर लगभग आठ करोड़ से अधिक मामले अभी भी विचाराधीन हैं। इनमें ऐसे मामले भी हैं जो 50 साल से भी अधिक समय से चल रहे हैं।

By सौमी दत्त, Posted by डॉ.अभिज्ञात

Oct 05, 2025 19:41 IST

नय़ी दिल्ली: इंसाफ मिलने में 'तारीख पे तारीख' का दौर खत्म होने वाला है! केंद्र सरकार किसी भी अभियु्क्त की न्यायिक प्रक्रिया को पूरा करके अब तीन साल के भीतर सजा देना अनिवार्य करने जा रही है।

यानी, किसी भी अपराध के होने पर आम आदमी जो थाने में एफआईआर दर्ज कराते थे, उसका भी निपटारा उस निर्धारित समय के भीतर हो जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अगले साल से यह नियम पूरे देश में लागू करने की पहल की है।

हरियाणा में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, 'आम लोगों के बीच एक धारणा बन गई है कि अगर वे थाने में कोई शिकायत दर्ज कराते हैं, तो उस शिकायत का निपटारा होने में सालों लग जाएंगे। मैं सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि अगले साल से यह स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी। तीन साल के भीतर किसी भी शिकायत का निपटारा हो जाएगा। हर कोई न्याय पाएगा। इससे तारीख पे तारीख का दौर भी खत्म हो जाएगा।'

हालांकि इस संबंध में सरकार कोई कानून बनाने की सोच रही है या नहीं, इस विषय पर शाह ने कोई टिप्पणी नहीं की। उनका दावा है, 'मोदी सरकार के कार्यकाल में लागू किए गए भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम - इन तीनों के माध्यम से त्वरित न्याय प्रदान करने की व्यवस्था करना संभव है।'

गृह मंत्री ने यह भी दावा किया कि 1947 में देश के स्वतंत्र होने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले सत्ता में रहने वाली किसी भी सरकार ने कभी औपनिवेशिक ब्रिटिश कानूनों को हटाकर समयानुकूल कानून बनाने की बात नहीं सोची।

आंकड़े बता रहे हैं कि आईपीसी (इंडियन पीनल कोड) के अनुसार हमारे देश के उच्च और निचली अदालतों में मिलाकर लगभग आठ करोड़ से अधिक मामले अभी भी विचाराधीन हैं। इनमें ऐसे मामले भी हैं जो 50 साल से भी अधिक समय से चल रहे हैं।

अभियुक्त और शिकायतकर्ता दोनों की मृत्यु हो चुकी है। फिर भी स्थानीय पुलिस ने अपनी 'क्लोजर रिपोर्ट' अदालत में जमा नहीं की है। पश्चिम बंगाल के मामले में सारदा, रोज वैली जैसे अवैध वित्तीय संस्थानों के खिलाफ दायर धोखाधड़ी के मामले 12 साल से अधिक समय से चल रहे हैं। न्यायिक प्रक्रिया ही शुरू नहीं की जा सकी है।

कलकत्ता हाई कोर्ट के वकील जयंत नारायण चट्टोपाध्याय कहते हैं, 'इससे घुमा-फिराकर पुलिस को सुविधा दी गई है। तीन साल की समय सीमा का मतलब है कि जांचकर्ता या तो जल्दबाजी में झूठी रिपोर्ट पेश करेंगे या फिर पैसे के आगे प्रभावित हो जाएंगे। वैसे भी हमारे देश में पुलिस का ही काम है जल्दी जांच पूरी करके कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से अपराधी को सजा दिलवाना। लेकिन गवाह को पेश न कर पाने या गवाह के प्रतिकूल हो जाने के कारण हजारों मामले युगों-युगों तक लटके रहते हैं।'

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