प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को दिल्ली के डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में आयोजित आरएसएस के शताब्दी समारोह की सराहना की। उन्होंने उसी मंच से विशेष रूप से डिजाइन किए गए स्मारक सिक्के और डाक टिकट भी जारी किए।
मोदी ने आरएसएस की तारीफ करते हुए कहा कि हमारे ख़िलाफ झूठे मुक़दमे दायर करने की कोशिशें हुई हैं। प्रतिबंध लगाने की कोशिशें हुई हैं लेकिन उसके बाद भी आरएसएस को कभी कोई फर्क नहीं पड़ा। इसकी वजह ये है कि हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहां हम अच्छाई और बुराई दोनों को स्वीकार करते हैं। मोदी ने आरएसएस के ऐतिहासिक योगदान का जिक्र करते हुए कहा कि देश प्रेम ही आरएसएस का एकमात्र लक्ष्य है। उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी। आरएसएस की छवि खराब करने की कई कोशिशें हुई हैं। झूठे आरोप और मुकदमे भी दायर किए गए हैं। फिर भी आरएसएस कभी भी बदले की भावना से युद्ध के मैदान में नहीं उतरा।
गौरतलब है कि आरएसएस के मुखपत्र 'द ऑर्गनाइज़र' के अनुसार 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर को 1 फरवरी की आधी रात को गिरफ्तार कर लिया गया था और 4 फरवरी को संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि जांच से पता चला कि गांधी की हत्या में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं थी।
हालांकि गोलवलकर को छह महीने बाद रिहा कर दिया गया लेकिन नवंबर 1948 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। आरएसएस का दावा है कि यह तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दबाव में किया गया था। इसके विरोध में स्वयंसेवकों ने देश भर में सत्याग्रह शुरू किया। अंततः जनता के दबाव में 12 जुलाई 1949 को बिना शर्त प्रतिबंध हटा लिया गया और अगले दिन गोलवलकर को रिहा कर दिया गया।
गोलवलकर को स्वयंसेवक 'गुरुजी' कहकर संबोधित करते थे। गुरुजी को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने इस दिन कहा कि झूठे आरोपों में जेल में यातनाएं सहने के बावजूद रिहा होने के बाद गुरुजी ने कहा था कि जिस प्रकार जीभ काटते समय दांत नहीं निकाले जाते, उसी प्रकार अपने समाज के विरुद्ध भी नहीं जाना चाहिए।