श्रीनगरः श्रीनगर में चार साल से बंद पड़े प्रेस एनक्लेव स्थित कश्मीर टाइम्स के दफ़्तर में गुरुवार सुबह जम्मू–कश्मीर पुलिस की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) ने छापेमारी की। एजेंसी ने अपने बयान में कहा कि कश्मीर टाइम्स ‘देश–विरोधी’ गतिविधियों में शामिल है। दफ़्तर से AK सीरीज़ के हथियारों के 14 खाली कारतूस, एक रिवॉल्वर, तीन ज़िंदा कारतूस, चार इस्तेमाल किए हुए खोल और चार ग्रेनेड सेफ़्टी लीवर बरामद किए गए। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ये सभी चीज़ें अवैध रूप से रखी गई थीं, जो चरमपंथी या देश–विरोधी तत्वों से संपर्क का संकेत देती हैं और इसकी गहराई से जांच ज़रूरी है।
संस्था की प्रबंध संपादक अनुराधा भसीन पर आरोप लगाया गया है कि वे अपने अख़बार के माध्यम से देश के खिलाफ युद्ध में सक्रिय समर्थन दे रही थीं। उनसे पूछताछ की संभावना है। हालांकि अनुराधा और उनके पति प्रभोद जामवाल ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए बयान जारी किया कि यह छापा, देश–विरोधी गतिविधियों के झूठे आरोप और अख़बार पर दमन की कार्रवाई उन्हें चुप कराने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यों पर सवाल उठाना देश-विरोध नहीं होता और सरकार तथा राष्ट्र कभी एक नहीं होते।
सूत्रों के मुताबिक सुबह 6 बजे पुलिस ने मीडिया मैनेजर संजीव कारनी को घर से बुलाकर जम्मू के रेसिडेंसी रोड स्थित कार्यालय खुलवाया, जहाँ तलाशी के बाद पुलिस उन्हें लेकर गांधी नगर स्थित जामवाल दंपती के घर पहुँची और वहाँ दो घंटे तक तलाशी चली। SIA ने यह नहीं बताया कि वहाँ से क्या मिला। पुलिस द्वारा दर्ज FIR में कहा गया है कि यह मीडिया प्लेटफ़ॉर्म आतंकवाद और अलगाववादी सोच को बढ़ावा दे रहा था, भड़काऊ टिप्पणियाँ करता था, गढ़ी हुई व झूठी खबरें प्रसारित करता था, युवाओं को कट्टरपंथ की ओर धकेलता था, आतंकियों के प्रति नरमी दिखाता था, कानून–व्यवस्था को बाधित करता था और भारत की संप्रभुता व अखंडता को चुनौती देता था। लेकिन सवाल उठ रहा है कि जब यह अख़बार चार साल से छप नहीं रहा और दफ़्तर पहले से ही सरकारी रूप से सील है तो इतने गंभीर सामान वहाँ कैसे पाए गए? कई पत्रकारों और मीडिया संगठनों ने इस कार्रवाई को मीडिया पर हमले और उसकी आवाज़ दबाने की कोशिश बताया है।
हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने दिल्ली के लाल किले विस्फोट के बाद कश्मीरियों को आतंकवादी ठहराने की तैयारी किए जाने का आरोप लगाया था। विश्लेषकों का कहना है कि इसी माहौल में 1954 में स्थापित इस अख़बार के बंद दफ़्तर पर छापा उसी आशंका को मजबूती देता है। उप–मुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने कहा कि मीडिया अपना काम कर रहा है और यदि छापा मारना हो, तो चयनात्मक नहीं होना चाहिए; यदि कोई गलती है तो कार्रवाई हो, लेकिन सिर्फ़ दबाव बनाने के लिए ऐसी तलाशी उचित नहीं है। PDP नेता इल्तिजा मुफ़्ती ने कहा कि कश्मीर टाइम्स उन दुर्लभ अख़बारों में से है, जिसने कभी सरकारी दबाव के आगे सिर नहीं झुकाया और सच्चाई सामने रखी, इसलिए देश-विरोधिता का बहाना बनाकर तलाशी लेना अत्याचार का प्रतीक है। उनका सवाल था कि क्या सच बोलने वाला हर व्यक्ति ‘एंटी–नेशनल’ कहलाएगा? PDP के युवा अध्यक्ष आदित्य गुप्ता ने भी छापे की आलोचना करते हुए कहा कि कश्मीर की सबसे साहसी आवाज़ होने के कारण ही यह हमला हुआ है।
विदेश में मौजूद अनुराधा भसीन ने कहा कि उन्हें यह घटना चौंकाती नहीं, बल्कि स्तब्ध करती है क्योंकि जम्मू का ऑफिस वर्षों से निष्क्रिय है, प्रिंट बंद है और वे वहाँ रहती भी नहीं। उन्हें छापे की जानकारी पुलिस ने न पहले दी न बाद में, बल्कि उन्होंने अपने मीडिया मित्रों से यह बात जानी। उनका कहना है कि सरकार समय–समय पर ऐसे तरीक़ों से डराकर और दमन करके उनकी आवाज़ दबाने की कोशिश करती रही है लेकिन वे नहीं डरेंगी और उनका काम चलता रहेगा। उन्होंने कहा कि उनकी विरासत किसी ऑफिस तक सीमित नहीं है, बल्कि पीढ़ियाँ जानती हैं कि संस्था ने क्या काम किया है।
2020 के अक्टूबर में प्रशासन ने कश्मीर टाइम्स के श्रीनगर कार्यालय को सील किया था और बाद में केवल मुख्य द्वार तथा कुछ कमरों तक सीमित पहुँच दी गई थी। लगभग पाँच साल बाद इस दफ़्तर में फिर से तलाशी हुई है। पुलिस ने कहा है कि बरामद सभी वस्तुओं को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा जाएगा, जिससे पता चलेगा कि इनका उपयोग कहाँ, क्यों और किसके लिए किया जाना था तथा इनका किसी आतंकी संगठन या सहानुभूति रखने वाले व्यक्ति या समूह से कोई संबंध है या नहीं।