नयी दिल्लीः चंद्रपुरम पोन्नुस्वामी राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। शुक्रवार सुबह पौने दस बजे के करीब वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे। ठीक सुबह दस बजे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी दर्शक दीर्घा में बैठकर पूरा समारोह देखते रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी उपस्थित थे।
पिछले 21 जुलाई को धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफे की घटना से देश में हलचल मच गई थी। उनका कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था। लेकिन शारीरिक अस्वस्थता का कारण बताते हुए वे अपना कार्यकाल पूरा होने से ढाई साल पहले ही पद छोड़ गए। हालांकि विपक्ष का दावा है कि केंद्र सरकार के साथ तनाव के कारण ही धनखड़ को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के महाभियोग के मामले में वे मोदी सरकार से सहमत नहीं हुए थे। कहा जाता है कि वहीं से समस्या शुरू हुई।
इसके बाद एनडीए गठबंधन ने राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया। इसके विपरीत इंडिया गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी का नाम घोषित किया। 9 सितंबर को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में राधाकृष्णन 452 वोट लेकर विजयी हुए। सुदर्शन को 300 वोट मिले। जीतने के लिए राधाकृष्णन को 377 वोटों की जरूरत थी। कागजों पर एनडीए के पास 427 सांसदों का समर्थन था। इसके साथ वाईएसआरसीपी के 11 सांसदों ने भी राधाकृष्णन का समर्थन किया, लेकिन परिणाम घोषित होने के बाद देखा गया कि उन्हें 14 वोट अधिक मिले हैं। इससे क्रॉस वोटिंग की अटकलें लगाई जा रही हैं।
उल्लेखनीय है कि सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु भाजपा के प्रमुख नेताओं में से एक हैं। राज्य भाजपा में उनके सम्मान और जमीनी स्तर पर प्रभाव के कारण उन्हें 'तमिलनाडु का मोदी' भी कहा जाता है। किशोर अवस्था से ही वे आरएसएस के सदस्य रहे हैं। बाद में 1974 में भाजपा के माध्यम से उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया।
वे 1998 और 1999 में वे दो बार तमिलनाडु के कोयंबटूर से भारी मतों से जीतकर सांसद बने। वे वस्त्र संबंधी संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष, पीएसयू समिति और वित्तीय सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे। 18 फरवरी 2023 को केंद्र सरकार ने राधाकृष्णन को झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया। वे जुलाई 2024 तक इस पद पर रहे। इस दौरान उन्हें तेलंगाना के राज्यपाल और पुडुचेरी के उपराज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया था।