कुनो में तीन साल पूरे होने पर 16 'भारतीय चीते'!

By शिलादित्य साहा

Sep 22, 2025 16:13 IST

एई समय, नयी दिल्लीः अवास्तविक, अवैज्ञानिक। गिनी पिग की फैक्टरी! अफ्रीका से मध्य प्रदेश के कुनो के जंगल में लाने के कुछ महीने बाद जब एक के बाद एक चीते की मृत्यु की खबरें आ रही थीं, तब विभिन्न क्षेत्रों से ऐसी ही टिप्पणियां उड़ रही थीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सपने का प्रोजेक्ट', उन्हीं के जन्मदिन 17 सितंबर को चीतों को इस देश के जंगल में छोड़ा गया था। उस प्रोजेक्ट की अस्थायी विफलता पर जहां विपक्षी राजनेता मुखर हुए हैं, वहीं वैज्ञानिकों के एक वर्ग ने भी सवाल उठाया है कि क्यों अच्छी तरह से शोध किए बिना ही विदेशी मेहमानों को इस देश में लाया गया। सितंबर 2022 से फरवरी 2023 तक नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कुल 20 चीते कुनो में आए थे और मार्च 2023 से अगस्त तक। इन कुछ महीनों में उनमें से पांच चीतों की मृत्यु हो गई। मार्च में जन्मे तीन चीते के बच्चे भी कुनो की गर्मी सहन न कर पाने के कारण निर्जलीकरण से मर गए। कुनो में चीतों की संख्या एक झटके में घटकर 13 हो गई और अब? प्रोजेक्ट के तीन साल पूरे होने के मौके पर चीते कैसे हैं?


विफलता के अंधेरे से काफी हद तक प्रकाश की ओर लौटते हुए इस समय भारत के खुले जंगलों में चीतों की संख्या 27 है और उनमें से इस देश में जन्मे चीते ही 16 हैं। यह संख्या नए साल के दिन भी 17 हो सकती थी, अगर पिछले सोमवार, 15 सितंबर को तेंदुए के हमले में घायल होकर एक चीते का बच्चा न मरा होता। भारत में चीतों के पहले आवास कुनो में अब 25 चीते तथा दूसरे आवास गांधीसागर में दो चीते हैं। हालांकि यह व्यवस्था भी आज ही बदल रही है। अप्रैल के अंत में कुनो से गांधीसागर दक्षिण अफ्रीकी नर चीते प्रभास और पावक भेजे गए थे । दक्षिण अफ्रीकी मादा चीता धीरा आज बुधवार को कुनो से गांधीसागर भेजी जाएगी। माना जा रहा है कि गांधीसागर के जंगल में प्रभास-पावक ने इन कुछ महीनों की गर्मी-बरसात में अच्छी तरह से अनुकूलन कर लिया है, इसलिए अब धीरा को भेजा जा रहा है, ताकि गांधीसागर में भी अफ्रीकी चीतों की अगली पीढ़ी पैदा हो सके।


कुनो के मुख्य वन संरक्षक उत्तम कुमार शर्मा का कहना है कि यह सब पूरी तरह से वैज्ञानिक कार्य का परिणाम है। कई लोगों ने कहा था कि अफ्रीकी चीते इस देश के जलवायु में अनुकूलन नहीं कर पाएंगे लेकिन हमने देखा है कि वे अनुकूलन कर चुके हैं। उनकी अगली पीढ़ी भी शानदार तरीके से जंगल में फैल रही है। हमारे वनकर्मी, शोधकर्ता, चिकित्सकों की टीम सभी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए उनकी देखभाल कर रही है। आज जो 16-17 चीते के बच्चे कुनो में देख रहे हैं, वे ही प्रमाण हैं कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं।


उत्तम की व्याख्या है कि एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप के जंगल में चीता पुनः प्रवेश जैसे प्रोजेक्ट का मूल्यांकन इतने कम समय में संभव नहीं है क्योंकि पहले पांच साल बाद शॉर्ट टर्म इवैल्युएशन होता है, पांच से 25 साल तक का समय मिड टर्म माना जाता है और 25 साल के बाद लॉन्ग टर्म इवैल्युएशन किया जाता है। कुनो के वन अधिकारी मान रहे हैं कि फिलहाल पहले तीन सालों में कुनो और गांधीसागर में चीता प्रोजेक्ट जिस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, वह काफी आशाजनक है। लेकिन चिंता का कारण भी है। प्रोजेक्ट की शुरुआत में वैज्ञानिकों के एक वर्ग ने सवाल उठाया था कि कुनो के जंगल में आकार-आयतन और क्षमता में आगे रहने वाले तेंदुए के साथ चीता कैसे मुकाबला करेगा? कुनो के वन अधिकारियों ने पिछले तीन सालों के शोध में देखा था कि कुनो के खुले जंगल में चीता और तेंदुआ अपने अलग-अलग होम रेंज बना रहे हैं। कोई किसी के क्षेत्र में नहीं आ रहा है, शिकार को लेकर भी लड़ाई नहीं हो रही है। लेकिन पिछले 15 सितंबर को मादा चीता ज्वाला के चार बच्चों में से एक की मौत तेंदुए के साथ लड़ाई में हुए घाव से ही हुई है। कम से कम प्रारंभिक जांच में कुनो प्राधिकरण ऐसा ही मान रहा है। 20 महीने का मादा बच्चा पिछले एक महीने से मां ज्वाला से दूरी बना रहा था, पिछले कुछ दिनों में वह बाकी तीन भाई-बहनों से भी दूर चला गया था। क्या तेंदुआ-चीता संघर्ष की आशंका ही सच होने जा रही है? कुनो तीन साल पूरे होने पर उस सवाल का भी जवाब खोज रहा है।

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