नयी दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन काल में जहां एक ओर इजरायल के साथ नई दिल्ली की नजदीकियां बढ़ी हैं, वहीं दूसरी ओर भारत ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन राज्य के गठन के प्रस्ताव का सीधे समर्थन भी किया है, जो अभूतपूर्व है। कूटनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग मान रहा है कि नई दिल्ली संतुलन बनाए रखने के लिए दो नावों में पैर रखकर चल रही है।
नई दिल्ली ने पिछले 11 वर्षों में फिलिस्तीन के विकास के लिए आठ करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता की है। यह राशि 65 वर्षों में की गई सहायता से लगभग दोगुनी है। अचानक मोदी काल में क्यों फिलिस्तीन को इतनी बड़ी मात्रा में धन सहायता दी गई? इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है।
मोदी सरकार के एक अधिकारी ने बताया है कि इजरायल के दबाव में संयुक्त राष्ट्र की UNRWA एजेंसी के काम में बाधा आ रही है। लेकिन नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से और इस संस्था के माध्यम से मानवीय सहायता जारी रख रही है। उल्लेखनीय है कि भारत प्रति वर्ष UNRWA को 5 मिलियन डॉलर का अनुदान देता है। 2020-21 से अब तक उन्हें कुल 27.5 मिलियन डॉलर दिए गए हैं।
पिछले 13 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के अधिवेशन में फिलिस्तीन को राज्य के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव फ्रांस ने पेश किया था। आश्चर्यजनक रूप से, उस प्रस्ताव का समर्थन इजरायल के 'दोस्त' नई दिल्ली ने किया। उस प्रस्ताव में कहा गया था कि दो राज्य आधारित समाधान ही एकमात्र रास्ता है। गाजा और वेस्ट बैंक को मिलाकर स्वतंत्र फिलिस्तीन का गठन करना होगा। कोई कब्जा या विस्थापन नहीं चलेगा।
फिर 2023 के 7 अक्टूबर को भारत ने हमास के हमले की भी निंदा की थी। एक बयान में विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कहा था, 'इजरायल को आत्मरक्षा का अधिकार है।'
कूटनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, नई दिल्ली संतुलन बनाए रखकर चल रही है। एक ओर इजरायल के साथ कूटनीतिक नजदीकियां बढ़ा रही है, वहीं फिलिस्तीन को आर्थिक सहयोग भी जारी रख रही है। फिलिस्तीन के राजदूत अब्दुल्ला शावेश ने हाल ही में बताया है कि वे भारत के इस रुख से संतुष्ट हैं।
नई दिल्ली ने भी जोर देकर कहा है कि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच जल्द से जल्द शांति वार्ता शुरू होनी चाहिए।