सप्तदीप साहा
मैंने पहले कभी ऐसी दिल्ली नहीं देखी। इससे पहले मैं दिल्ली आया हूँ, घूमा हूँ। अब मैं जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में मास्टर्स कर रहा हूँ। यहाँ लगभग चार महीने हो गए हैं। दिल्ली को ‘दिलवालों का शहर’ कहा जाता है। एक विस्फोट से जैसे यह दिल ठहर सा गया हो।
मेरी यूनिवर्सिटी से लालकिले की दूरी 15 किलोमीटर है। बाइक पर बैठा तो यही अनुमान लगा कि जैसे सड़क पर बाकी दिनों की तरह ही ट्रैफिक होगा। लेकिन सड़क पर यातायात की स्थिति देखकर बम विस्फोट जैसी किसी वारदात की आशंका ने घेर लिया। जैसे ही मैं घटना स्थल के पास पहुँचा, देखा कि एनएसजी और दिल्ली पुलिस की बड़ी फोर्स ने पूरे इलाके को घेर रखा है। यूं तो लालकिले में रात में भी काफी भीड़ रहती है। दुकानदार अपने ठेलों के साथ बैठे रहते हैं लेकिन आज कोई कहीं नहीं था। केवल वर्दीधारी लोग और मीडिया कर्मी ही मौजूद थे। हवा में अभी भी बारूद की गंध थी। पुलिसकर्मियों की आँखों में और चेहरे पर चिंता साफ़ नजर आ रही थी।
लालकिले के पास जामा मस्जिद के मेट्रो गेट की शटरें नीचे गिरा दी गयी थीं। सबवे को बंद कर दिया गया था। आसपास कम से कम 200 मीटर के दायरे में सब कुछ घेर लिया गया था। जिन कुछ आम लोगों से बातचीत हुई, उनके चेहरे पर स्पष्ट आतंक दिख रहा था। वे कह रहे थे, 'इतने दिन तक तो प्रदूषण की वजह से सांस लेना मुश्किल लगता था, अब ऐसा लग रहा है कि जीवन भी बचाने वाला नहीं।’
मेरे दोस्तों और परिवार के सदस्यों के घर से लगातार फोन आ रहे थे, बाहर न निकलने की चेतावनी के साथ। इस बीच ऑनलाइन खाने और ग्रॉसरी की डिलीवरी में भी असामान्य लंबा इंतज़ार करना पड़ा। ऐसा सामान्यतः नहीं होता। ऐसा लग रहा था कि पूरी दिल्ली में लोग अपने आप को घर में बंद कर चुके हैं।
घटनास्थल से थोड़ी दूर सड़क पर कार का एक दरवाज़ा पड़ा हुआ था। वह पूरी तरह से क्षतिग्रस्त था। लौटते समय मुझे इंडिया गेट दिखाई दिया। जहाँ लोग देर रात तक लाइटिंग देखने आते हैं, आज वहाँ कोई नहीं था। कांग्रेस मुख्यालय से लेकर बीजेपी के केंद्रीय कार्यालय और महाराष्ट्र भवन तक सघन सुरक्षा के दायरे में थे। सच कहूँ तो मैंने ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा था-न दिल्ली में, न कहीं और।