हाल ही में UNESCO की इंटैंजिबल हेरिटेज (Intangible Heritage) की सूची में इस साल दिवाली को भी शामिल किया गया है। बताया जाता है कि दिवाली एक ऐसा त्योहार है जिसके जरिए सामाजिक संबंधों के मजबूत बनाया जाता है। साथ ही यह परंपरा और संस्कृति के साथ-साथ स्थानीय लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में भी काम करता है। इस त्योहार के मौके पर सांस्कृतिक सामाजिक एकता और लिंगभेद को दूर जैसी शिक्षाएं प्रदान की जाती हैं। इन्हीं वजहों से दिवाली ने UNESCO की इस सूची में अपना स्थान पक्का कर लिया है।
पर क्या आप जानते हैं दिवाली न तो पहला और न ही एकलौता त्योहार है, जिसने UNESCO की सूची में अपना स्थान बनाया है। भारत के 5 ऐसे त्योहार हैं, जिन्होंने UNESCO की सांस्कृतिक धरोहर सूची में अपना स्थान बनाया है।
आइए जान लेते हैं कौन-कौन :-
1. दुर्गा पूजा (2021)
मुख्य रूप से कोलकाता में मनाया जाने वाला यह त्योहार व्यापक पैमाने पर देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों में रहने वाले बांग्लाभाषियों को जोड़ता है। मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करना, साज-सज्जा और इन दिनों के दौरान पूरा कोलकाता मानो किसी कैनवास में बदल जाता है। दुर्गा पूजा के दौरान यहां के हर गली और हर मुहल्ले में कुछ न कुछ कलात्मक जरूर नजर आता है।
2. कुंभ मेला (2017)
मुख्य रूप से 4 शहरों में इस मेले का आयोजन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र पर आधारित इस मेले का आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है। यह दुनिया में सबसे शांत तरीके से और विशालाकार में आयोजित होने वाला मेला है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
3. राम्मन (2009)
अप्रैल के महीने में उत्तराखंड के जुड़वां गांव सालूर-दुंगरा में मनाया जाने वाला यह एक पारंपरिक त्योहार है। इस त्योहार के माध्यम से स्थानीय देवता भूमियाल देवता की पूजा की जाती है। यह पूजा भी रामायण से ही प्रेरित बताया जाता है, जिसमें मुखौटा लगाकर पारंपरिक तरीके से नाचना-गाना आदि शामिल होता है। यह स्थानीय परंपराओं के साथ ही वहां की मान्यताओं पर आधारित है।
4. रामलीला (2008)
मुख्य तौर पर उत्तरी भारत में दशहरा के दौरान रामलीला का मंचन किया जाता है। यह रामचरितमानस के आधार पर मंचित होने वाला एक नाटक है जिसके संवाद से लेकर गीत और रामायण की कथा सुनाने की पूरी प्रक्रिया भी इसपर ही निर्भर करती है। यह न सिर्फ भारत की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है बल्कि इस दौरान हर जाति और वर्ग के लोगों को करीब लाने का काम भी करता है।
5. कुट्टीयट्टम (2008)
कुट्टीयट्टम केरल में मंचित होने वाला एक संस्कृत नाटक है। दावा किया जाता है कि इसकी शुरुआत लगभग 2000 साल पहले हुई थी। मुख्य रूप से इस नाटक का मंचन मंदिरों में किया जाता है। अपने शानदार भाव-भंगिमाओं की वजह से यह नाटक आज भी खूब पसंद किया जाता है।