'सुना है — दूरी में है प्रेम; आलिंगन में है मुक्ति — एकरसता से।' रणजीत दास की इस कविता को पढ़कर कई लोगों के मन में सवाल उठता है, क्या दूरी में वाकई प्यार होता है? प्यार का इंसान भौगोलिक नक्शे के अनुसार दूसरे पते पर रहता है। नियमित मुलाकात नहीं होती। आलिंगन, स्पर्श कुछ भी नहीं। कई लोगों के रिश्ते पर इस अलगाव, दूरी का असर पड़ता है। लेकिन रिश्ते को बचाए रखना ही असल बात है। भौगोलिक दूरी रिश्ते पर असर न डाले, इसके लिए रिश्ते का जश्न कैसा होना चाहिए?
सोच रहे हैं कि व्हाट्सएप के युग में भी अब हाथ से चिट्ठी लिखने बैठेंगे? लिख भी सकते हैं। नुकसान क्या है? तकनीक के बिना जीवन स्थिर है। लेकिन दोनों के रिश्ते के बंधन को बनाए रखने के लिए हाथ से लिखी चिट्ठी का कोई जोड़ नहीं। चिट्ठी के इंतजार में बैठे रहने में ही प्यार का जश्न छिपा हुआ है।
रिश्ते की पारदर्शिता हमेशा ही रिश्ते को अच्छा रखती है। दूर रहने पर उस पारदर्शिता को बनाए रखने की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है क्योंकि साथी तब आंखों से दूर होता है। पूरे दिन कहां जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं इसका विस्तृत विवरण न देने पर भी, मोटे तौर पर अपडेट देते रहना अच्छा है। इससे साथी का अकेलापन भी कम होता है और उसे लगता है कि आपके लिए उसका महत्व अभी भी बरकरार है।
पूरे दिन में कम से कम एक बार फोन पर बात करना जरूरी है। कम समय के लिए ही सही, फोन पर बात हो जाए तो अच्छा है। प्यार हो तो मन के इंसान के साथ दिन के अंत में कम से कम एक बार बात करने की इच्छा होना बहुत स्वाभाविक है। जब साथी अलग शहर में हो, तब किसी अनजान या कम जानने वाले व्यक्ति के साथ कॉफी या डिनर या लंच खाने जाने से पहले, एक बार उसे बता देना बुद्धिमानी का काम है क्योंकि दूर रहने पर किसी भी व्यक्ति के मन में साथी या साथिन को लेकर एक तरह की असुरक्षा काम करती है।
मन का इंसान दूर है इसलिए हर समय शोकाकुल रहना बिल्कुल ठीक नहीं है। अपने मन को ठीक रखने की जिम्मेदारी अपनी ही है। पार्टनर पास होता या एक ही शहर में रहता तो जैसे खुश रहते, वैसे ही रहें। इससे दूर रहने वाला व्यक्ति भी अच्छा रहेगा। बीच-बीच में समय-अवसर मिलने पर कुछ सरप्राइज उसके लिए रख दें।