नई दिल्लीः वेंटिलेटर चालू करते ही बिलिंग शुरू नहीं की जा सकती यह बात केंद्र सरकार ने साफ कर दी है। निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर के इस्तेमाल को लेकर एक नई गाइडलाइन जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि वेंटिलेशन देने का स्पष्ट और तर्कसंगत कारण लिखित रूप में दर्ज करना होगा। इलाज के खर्च का पूरा ब्योरा देना होगा और परिजनों की सहमति के बाद ही सेवा शुरू की जा सकेगी। अनावश्यक वेंटिलेशन और अपारदर्शी बिलिंग किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
केंद्र का संदेश साफ है मकसद मरीज की जान बचाना है वेंटिलेटर को मुनाफ का साधन नहीं बनने दिया जाएगा। इसी उद्देश्य से स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज (DGHS) ने निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर के उपयोग में पारदर्शिता, नैतिकता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। लोकसभा में नियम 377 के तहत उठाए गए एक प्रश्न के संदर्भ में इस गाइडलाइन को अंतिम रूप दिया गया। वेंटिलेटर के अनावश्यक रूप से लंबे इस्तेमाल, खर्च से जुड़ी शिकायतों और मरीज के परिवार से संवाद की कमी जैसे मुद्दों को ध्यान में रखकर यह दिशा निर्देश तैयार किए गए हैं।
इस गाइडलाइन के निर्माण के लिए DGHS की अतिरिक्त महानिदेशक सुजाता चौधरी के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई थी। इस समिति में दिल्ली एम्स, सफदरजंग अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, राम मनोहर लोहिया अस्पताल सहित देश के कई शीर्ष सरकारी अस्पतालों के एनेस्थीसिया, इमरजेंसी मेडिसिन और क्रिटिकल केयर विभागों के प्रमुख शामिल थे। इन्हीं विशेषज्ञों की राय के आधार पर गाइडलाइन को अंतिम रूप दिया गया है।
गंभीर मरीजों के इलाज में अब वेंटिलेटर का व्यापक इस्तेमाल होता है लेकिन इस जीवनरक्षक उपकरण की सेवा की बिलिंग को लेकर निजी अस्पतालों के एक वर्ग के खिलाफ लंबे समय से शिकायतें आती रही हैं। आरोप है कि कई बार बिना जरूरत मरीज के परिजनों को अंधेरे में रखकर मुनाफा बढ़ाया जाता है। इसी को रोकने के लिए बनी इस गाइडलाइन में साफ कहा गया है कि वेंटिलेटर भले ही जीवनरक्षक उपाय हो लेकिन उसका इस्तेमाल केवल निश्चित और तर्कसंगत कारणों से ही किया जाना चाहिए। सांस लेने में तकलीफ, एयरवे में रुकावट, श्वसन विफलता, तंत्रिका संबंधी समस्याएं, कार्डियक अरेस्ट, ट्रॉमा या ड्रग टॉक्सिसिटी जैसी स्थितियों में ही वेंटिलेटर देने की बात कही गई है।
गाइडलाइन में यह भी कहा गया है कि बुजुर्ग मरीजों की बढ़ती संख्या और आईसीयू सेवाओं की बढ़ती मांग के साथ नैतिक रूप से सही निर्णय लेना और भी जरूरी हो गया है। इसमें चार प्रमुख बायो-एथिकल सिद्धांतों पर जोर दिया गया है मरीज की स्वायत्तता, मरीज के सर्वोत्तम हित में उपचार, अनावश्यक नुकसान से बचाव और वेंटिलेटर सेवाओं में न्यायसंगत व समान अवसर। इनवेसिव और नॉन-इनवेसिव दोनों तरह की वेंटिलेशन इस गाइडलाइन के दायरे में आएंगी। हालांकि सामान्य ऑक्सीजन मास्क, नेजल प्रॉन्ग या हाई-फ्लो नेजल कैनुला को इस गाइडलाइन से बाहर रखा गया है।
नई गाइडलाइन के अनुसार, वेंटिलेटर सेवा शुरू करने से पहले मरीज के मेडिकल रिकॉर्ड में उसके स्पष्ट कारण और तर्क दर्ज करना अनिवार्य होगा। वेंटिलेशन के दौरान मरीज की नियमित क्लिनिकल जांच, मानक स्कोर के जरिये रोजाना मूल्यांकन और हर 48 से 72 घंटे में प्रग्नोसिस के पुनर्मूल्यांकन का भी प्रावधान है। 14 दिनों से अधिक समय तक वेंटिलेशन की स्थिति में मासिक ऑडिट, मल्टी-डिसिप्लिनरी रिव्यू कमिटी और तय समय सीमा में शिकायत निवारण व्यवस्था की भी बात कही गई है।
केंद्र का दावा है कि इस गाइडलाइन के लागू होने से निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर के इस्तेमाल में पारदर्शिता बढ़ेगी और मरीजों के अधिकार और मजबूत होंगे। इस गाइडलाइन का स्वागत करते हुए एसोसिएशन ऑफ हॉस्पिटल्स ऑफ ईस्टर्न इंडिया के अध्यक्ष रूपक बरुआ ने कहा कि कुछ निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर को लेकर होने वाली अनुचित बिलिंग पर लगाम लगाने के लिए केंद्र का यह कदम बेहद जरूरी और समयानुकूल है।