पूरी दुनिया को दहला देने वाला सनसनीखेज बुराड़ी कांड याद है? साल 2018 में दिल्ली के बुराड़ी इलाके में भाटिया परिवार के 11 सदस्यों ने अपने घर में एक साथ आत्महत्या कर ली थी। इस परिवार के छोटे बेटे ललित भाटिया ने अपने मनोविकार से उपजे एक अंधविश्वास को परिवार के बाकी सदस्यों में भर दिया था। सभी यह मानने लगे कि अगर वे एक साथ आत्महत्या कर लेंगे तो उनका पुनर्जन्म होगा और अगला जन्म सबके लिए बेहतर होगा।
इस सनसनीखेज असल जिंदगी की घटना को रुपहले पर्दे पर आने में ज्यादा वक्त नहीं लगा था। 2021 में नेटफ्लिक्स पर 'हाउस ऑफ सिक्रेट: द बुराड़ी डेथ्स' नाम से एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज बनी। 2023 में डिज़्नी-हॉटस्टार पर भी इसी घटना पर आधारित एक फिल्म-सीरीज 'आखिरी सच' रिलीज हुई थी जिसमें पुलिस इंस्पेक्टर अन्या स्वरूप (तमन्ना भाटिया) ने तहकीकात करने के बाद इस 'शेयर्ड साइकोटिक डिल्यूशन' मामले का रहस्य उजागर किया था।
डॉक्टरों का मानना है कि इस तरह का मानसिक भ्रम या साइकोटिक डिल्यूशन आमतौर पर कई लोगों को एक साथ तभी प्रभावित करता है जब वे सामाजिक संपर्कों के माध्यम से घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं। यह परिवार में ही नहीं करीबी दोस्तों के बीच भी हो सकता है। हालांकि खास कोलकाता में हाल के केस स्टडीज से पता चला है कि आभासी दुनिया के संपर्क में आने पर भी ऐसा हो सकता है। कोलकाता के एक निजी अस्पताल में इलाज करा रहे तीन मरीजों की मनोविकृति और उनके इलाज का इतिहास भी मनोचिकित्सा की एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में भी प्रकाशित हुआ है।
हाल ही में 'कंसोर्टियम साइकियाट्रिकम' पत्रिका में प्रकाशित अपने एक शोधपत्र का जिक्र करते हुए अपोलो मल्टी-स्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरो साइकियाट्रिस्ट देवांजन बंद्योपाध्याय ने दावा किया है कि अभी तक किसी भी वैज्ञानिक पत्रिका में इस तरह के डिजिटल या वर्चुअल साइकोसिस के बारे में कुछ भी प्रकाशित नहीं किया गया है। डॉक्टर इस बात से हैरान हैं कि आभासी दुनिया में भी कई लोग एक ही तरह के मानसिक भ्रम का शिकार हो सकते हैं। तीन ऑनलाइन गेमर्स जिन्होंने असल जिंदगी में कभी एक-दूसरे को नहीं देखा था वे सभी धीरे धीरे एक ही भ्रम के शिकार हो गये थे।
देवांजन ने बताया कि इत्तफाक से ही उन्हें इन तीन मनोरोगियों के बारे में पता चला था। इनका इलाज करते हुए उन्हें एहसास हुआ कि कैसे एक व्यक्ति के विचार, भावनाएं, संवेदनाएं और शंकाएं दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करती हैं। आभासी बातचीत के बाद इन तीनों ऑनलाइन गेमर्स को यह यकीन हो गया था कि कोई बाहरी संस्था उन पर ऑनलाइन नजर रख रही है!
उन्हें शक है कि ये संगठन उनके व्यवहार और इरादों पर नजर रखकर उनकी कमजोरियों का पता लगाने की कोशिश कर रहा है। उन्हें यह भी लगने लगा है कि कोई उन पर इंटरनेट एक्टिविज्म खासकर गेमिंग प्लेटफॉर्म पर सरकारी निगरानी के जरिए कुछ जानकारी लीक करने का दबाव जरूर बना रहा है।
पहला मरीज खुद डॉक्टर के पास आया था। पता चला कि वह तीन साल से दो गेमर्स के साथ ऑनलाइन संपर्क में था। हालांकि उसने उनमें से किसी को भी कभी व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा था। बाद में इत्तफाक से एक और मरीज उसी डॉक्टर के पास आया। तब पता चला कि वह इन बाकी दो गेमर्स में से एक था।
इसके बाद जब तीसरे व्यक्ति के परिवार से संपर्क किया गया तो पता चला कि वह भी इसी तरह के भ्रम से ग्रस्त था। तीनों लोगों को देखने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि वे एक ही तरह के मानसिक भ्रम के शिकार थे। यह पता चला कि दूसरा मरीज ही असल में साइकोटिक डिल्यूशन का पहला शिकार बना था और बाद में उसने बाकी दोनों गेमर्स को प्रभावित किया जिससे उनलोगों ने भी उसके भ्रम पर यकीन कर लिया।
इसके बाद देवांजन ने बताया कि इन तीनों मरीजों का इलाज कर उन्हें स्वस्थ करने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने मरीजों को एंटीसाइकोटिक दवाएं देने के साथ ही उनकी 'डिजिटल हाइजीन' पर विशेष निगरानी की व्यवस्था की। तीनों लोगों के बीच ऑनलाइन संपर्क को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया। तीन महीने बाद की समीक्षा से पता चला कि सभी के मानसिक स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है। हालांकि भ्रम का स्रोत बनने वाले व्यक्ति की हालत ज्यादा संदिग्ध बनी हुई है।
न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट देवांजन ने कहा कि यह घटना साबित करती है कि डिल्यूशन या भ्रम पैदा करने के लिए हमेशा शारीरिक निकटता जरूरी नहीं होती है। इसलिए अब हमें मरीजों का इलाज करते वक्त उनकी ऑनलाइन गतिविधियों और डिजिटल दुनिया में उनकी मौजूदगी पर भी ध्यान देना पड़ रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि डिजिटल दुनिया में बहुत अधिक एक्टिव रहने पर शारीरिक निकटता की तरह ही मानसिक स्वास्थ्य पर भ्रम का असर होता है। इसलिए उन्होंने सभी को इस मामले में सावधान रहने की सलाह दी है।