समाचार एई समय: अमेरिका सहित पश्चिमी देशों की पाबंदियों और भू-राजनीतिक दबाव के बावजूद रूस से भारत के कच्चे तेल के आयात में एक बार फिर तेजी देखी जा रही है। कच्चे तेल के विक्रेताओं और रिफाइनरी सूत्रों के अनुसार, चालू महीने में रूस से भारत का तेल आयात प्रतिदिन 10 लाख बैरल की सीमा पार करने जा रहा है, जो हालिया अनुमानों से बिल्कुल मेल नहीं खाता। वॉशिंगटन की कड़ी पाबंदियों के चलते रूसी तेल आयात में बड़ी गिरावट की आशंका जताई जा रही थी। लेकिन हकीकत यह है कि भारी छूट पर तेल आपूर्ति करने को तैयार, पाबंदियों से मुक्त रूसी कंपनियों से भारतीय रिफाइनरियों ने एक बार फिर बड़े पैमाने पर खरीदारी शुरू कर दी है।
दुनिया के तीसरे सबसे बड़े कच्चे तेल आयातक देश के रूप में भारत ने नवंबर महीने में प्रतिदिन औसतन 17.77 लाख बैरल रूसी तेल आयात किया है, जो अक्टूबर के मुकाबले 3.4 प्रतिशत अधिक है। संकेत मिल रहे हैं कि दिसंबर में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, महीने के अंत तक प्रतिदिन औसत आयात 12 लाख बैरल को पार कर 15 लाख बैरल के करीब पहुंच सकता है।
कई सूत्रों के हवाले से समाचार एजेंसी ने बताया है कि रूस की रोसनेफ्ट और लुकोइल जैसी कंपनियों पर 21 नवंबर से पाबंदियां लगाने का फैसला वॉशिंगटन ने लिया था। उससे पहले ही दोनों कंपनियों के साथ अनुबंध पूरा करने की जल्दबाजी में दिसंबर के लिए अतिरिक्त कार्गो बुक कर लिए गए थे, जिनमें से कई पहले ही भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुके हैं।
भारत और रूस के रिश्ते अब भी मजबूत हैं, इसका संकेत इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात के बाद मिला। बैठक में दोनों देशों ने आपसी सहयोग जारी रखने की बात कही थी। उसी राजनीतिक संदेश का प्रतिबिंब ऊर्जा व्यापार में भी साफ तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकि, रिलायंस इंडस्ट्रीज और एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी जैसी कुछ निजी रिफाइनरियों ने कहा है कि वे जनवरी में रूसी तेल की खरीद रोकेंगी, लेकिन सरकारी कंपनियों की दिलचस्पी कम नहीं हुई है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन पहले की तरह रूसी तेल खरीद रही है। भारत पेट्रोलियम जनवरी में कम से कम छह कार्गो लेने की योजना बना रही है, जबकि दिसंबर में यह संख्या सिर्फ दो थी। हिंदुस्तान पेट्रोलियम भी जनवरी में कच्चा तेल आयात करने को लेकर बातचीत कर रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि रूसी तेल पर दी जा रही भारी छूट अब भी भारतीय रिफाइनरियों के लिए बड़ा आकर्षण बनी हुई है। जनवरी के लिए रूसी कंपनियों ने ब्रेंट क्रूड के मुकाबले प्रति बैरल लगभग 6 डॉलर कम कीमत रखी है, जो कुछ महीनों पहले की तुलना में दो से तीन गुना अधिक छूट है। घरेलू बाजार की मांग पूरी करने और निर्यात बनाए रखने के लिए रूस ‘डोमेस्टिक स्वैप’ जैसी रणनीतियों का इस्तेमाल कर रहा है। इसके जरिये वह पाबंदियों को दरकिनार कर भारत सहित एशियाई बाजारों में तेल भेज सकेगा।
हालांकि, कूटनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो यह स्थिति भारत के लिए बिल्कुल भी सुखद नहीं है। यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूसी तेल की खरीद बंद करने से समुद्री मार्ग के जरिये रूस का सबसे बड़ा ग्राहक भारत बन गया है। इसका असर भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं पर भी पड़ा है, जहां अमेरिका की ओर से शुल्क बढ़ाने के फैसले ने भारत पर दबाव बढ़ाया है। इसके बावजूद, अल्पकाल में सस्ती ऊर्जा सुनिश्चित करने के हित में भारत जिस व्यावहारिक रास्ते पर चल रहा है, दिसंबर में रूसी तेल आयात में आई यह बढ़ोतरी उसी का साफ संकेत है।