समाचार एई समय: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की कई नीतियों और फैसलों के कड़े आलोचक के तौर पर रघुराम राजन की भूमिका सर्वविदित है। उनकी आलोचना हवा में की गई बातें नहीं होतीं, यह पहले भी कई बार साबित हो चुका है। आर्थिक आंकड़ों, जीडीपी वृद्धि दर और देशी-विदेशी संस्थाओं की ‘प्रशंसा’ के आधार पर सरकार जिस तरह ‘विकसित भारत’ और दुनिया की सबसे बड़ी या शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने का दावा कर रही है, उस पर हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर ने आपत्ति जताई है।
भारत को अभी दुनिया की किसी ‘सुपरपावर’ के रूप में घोषित करना ठीक नहीं होगा-उन्होंने ऐसी चेतावनी दी है। उनके अनुसार, महत्वाकांक्षा जरूरी है, लेकिन वास्तविक हालात की अनदेखी कर समय से पहले ‘सुपरपावर’ का तमगा लगा देना देश को उसके मूल कामों से भटका सकता है। हाल ही में एक पॉडकास्ट में बातचीत के दौरान राजन ने कहा, “भारत के सामने अभी लंबा रास्ता बाकी है और वास्तविक अर्थों में दुनिया की अग्रणी सुपरपावर बनने के लिए आने वाले कई दशकों तक लगातार मेहनत की जरूरत होगी।”
उनके शब्दों में, “यह जो नैरेटिव गढ़ा जा रहा है कि भारत ने पहले ही वैश्विक मंच पर अपनी जगह बना ली है, वह दरअसल एक तरह की आत्मतुष्टि पैदा करता है और आगे की कठिन वास्तविकताओं को ढक देता है। इसलिए अभी भारत को सुपरपावर कहना असल में जल्दबाजी होगी।” राजन का कहना है कि सच्ची सुपरपावर बनने के लिए जो-जो काम जरूरी हैं, उनमें से कई अभी बाकी हैं और उन्हें पूरा होने में वर्षों लगेंगे।
राजन के मुताबिक, “सपने देखना गलत नहीं है, बल्कि उसकी जरूरत है। लेकिन सपने और उन्हें हासिल करने की वास्तविकता के बीच के फर्क को समझना होगा। हमें बड़े सपने देखने चाहिए, दुनिया के शिखर पर पहुंचने का लक्ष्य होना चाहिए। लेकिन उस सपने को पूरा करने के लिए जिस तैयारी की जरूरत है, वह ‘होमवर्क’ किए बिना यह नहीं कहा जा सकता कि हम उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं।”
उन्होंने आशंका जताई कि भारत को अभी से सुपरपावर बताने पर रोजगार, कौशल, शिक्षा और संस्थागत ढांचे जैसी बुनियादी कमजोरियां नजरअंदाज हो जाएंगी। राजन ने साफ कहा, “हम अभी सुपरपावर नहीं हैं लेकिन अगर हम सही रास्ते पर आगे बढ़ें और सही काम करें, तो एक दिन जरूर सुपरपावर बनेंगे। हालांकि, उसमें अभी काफी समय बाकी है।”
उनका यह भी मानना है कि अत्यधिक आत्मप्रशंसा देश के युवाओं के सामने मौजूद वास्तविक चुनौतियों को छिपा सकती है।
शीर्ष बैंक के पूर्व गवर्नर ने याद दिलाया कि सच्ची सुपरपावर बनना किसी नारे या तय समयसीमा का मामला नहीं है। यह रोज़मर्रा की निरंतर मेहनत का नतीजा होता है। इसके लिए देश के हर नागरिक को चाहे वह सेना में हो, सिविल सेवा में, डॉक्टर, शिक्षक या शोधकर्ता-अपनी-अपनी जगह से कम से कम अगले 30 वर्षों तक राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुटना होगा। तभी एक दिन संतोष का स्थान हासिल किया जा सकेगा।
भारत की मौजूदा आर्थिक प्रगति पर भी सतर्क नजर बनाए रखने की जरूरत पर उन्होंने जोर दिया। समग्र आर्थिक स्थिरता, बुनियादी ढांचे के विकास और महंगाई पर नियंत्रण के क्षेत्र में प्रगति को स्वीकार करते हुए राजन ने कहा, “रोजगार सृजन, कौशल विकास, शिक्षा की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ाने के मामले में देश की विशाल युवा आबादी के सामने अभी भी बड़ी चुनौतियां मौजूद हैं।” उनके अनुसार, केवल ऊंची विकास दर या अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा में खो जाना एक बड़ी भूल होगी।
राजन का सार यही है कि समय से पहले जीत का एलान करने के बजाय, यदि भारत धैर्यपूर्ण, मेहनत-तलब सुधारों और क्षमता निर्माण के रास्ते पर डटा रहता है, तभी एक दिन वह सचमुच सुपरपावर बन सकेगा।