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‘माता-पिता प्रार्थना करते थे…’, विद्या की ज़िंदगी के इस बुरे दौर में वे उनके साथ कैसे खड़े रहे?

हाल ही में एक इंटरव्यू में ‘कहानी’ से मशहूर एक्ट्रेस ने अपनी ज़िंदगी के उस बुरे दौर के बारे में बात की।

By अंकिता दास, Posted by: श्वेता सिंह

Dec 18, 2025 21:46 IST

एक समय था जब बॉलीवुड में विद्या बालन की तुलना ‘पारस पत्थर’ से की जाती थी। ‘ पारस पत्थर’ का मतलब है, जिसके छूने से सब कुछ सोना बन जाता है। सबको लगता था कि वह जो भी फिल्म करेंगी वह हिट होगी। हालांकि यह सफलता उन्हें एक दिन में नहीं मिली। अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत में उन्हें बार-बार रिजेक्ट होना पड़ा था। उन्हें हर रात अपनी नाकामियों से लड़ना पड़ता था। हाल ही में एक इंटरव्यू में ‘कहानी’ से मशहूर एक्ट्रेस ने अपनी ज़िंदगी के उस बुरे दौर के बारे में खुलकर बात की।

विद्या ने कहा कि करियर की शुरुआत में उन्हें एक के बाद एक ऑडिशन देने पड़ते थे। किनारे तक पहुंचने के बाद भी कई बार नाव डूब जाती थी। बार-बार रिजेक्ट होने से विद्या मानसिक रूप से टूट गई थीं। एक्ट्रेस के शब्दों में, 'मेरे माता-पिता प्रार्थना करते थे कि मेरी कम से कम एक फिल्म तो रिलीज़ हो जाए। भले ही मैं भविष्य में एक एक्ट्रेस के तौर पर सफल न होऊं, लेकिन यह सफल होगी। मेरी एक फिल्म आम जनता के बीच पॉपुलर होगी। दुनिया के सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे हों। हालांकि वे देख सकते थे कि रिजेक्ट होने के बाद मैं कैसे निराशा में डूब रही थी। इसके बावजूद, उन्होंने मुझे एक्टिंग छोड़ने के लिए नहीं कहा। उन्होंने हमेशा मुझे लड़ने के लिए प्रेरित किया।' विद्या ने अपनी ज़िंदगी के सबसे मुश्किल हालात में भी हार नहीं मानी। वह आखिर तक लड़ीं। एक्ट्रेस ने कहा, 'मैंने हार नहीं मानी। मैं लगभग हर रात रोते हुए सो जाती थी। फिर अगली सुबह मैं उठती और खुद से कहती, एक और नया दिन, देखते हैं आज क्या होता है।'

उन्होंने एक से ज़्यादा बार माना है कि विद्या के एक्टिंग करियर में सफलता का यह रास्ता बिल्कुल भी आसान नहीं था। हीरोइन को अपने बॉडी शेप के लिए मजाक का भी सामना करना पड़ा। वह एक से ज्यादा बार बॉलीवुड में बॉडी शेमिंग का शिकार भी हुई हैं। विद्या ने इन सबसे लड़कर बॉलीवुड में अपने पैर मजबूत किए हैं। उनकी प्रोफेशनल लाइफ शानदार और ज्ञान देने वाली रही है। उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिले हैं और पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया है।

चाहे उनकी प्रोफेशनल लाइफ हो या पर्सनल, उन्हें अनगिनत रिजेक्शन मिलें। अक्सर ऐसा होता है कि 'नहीं' सुनकर आप कई बार अपना वजूद मिटा देना चाहते होंगे। हालांकि, साइकोलॉजिस्ट कहते हैं कि सफलता को सिर्फ नाम, शोहरत और पैसे के पैमाने से नहीं आंकना चाहिए। इस तरह से आंकना बहुत मुश्किल है कि कोई किसी भी फील्ड में कितना सफल है। इसमें पर्सनल-सोशल असर और कुछ हद तक किस्मत भी शामिल होती है। इसलिए, उस नजरिए से सफलता या रिजेक्शन को आंकना भी जरूरी है।

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