नयी दिल्लीः भेदभाव-विरोधी छात्र आंदोलन के दौरान नारा उठा था-“ढाका न दिल्ली… ढाका, ढाका।” गुरुवार को उस्मान हादी की मौत के बाद एक बार फिर बांग्लादेश में आग भड़क उठी है और उसकी आँच भारत तक भी पहुँचने वाली है। कूटनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग का मानना है कि इस स्थिति में ढाका और नई दिल्ली के बीच की दूरी और बढ़ने वाली है।
भारत–बांग्लादेश संबंधों की पृष्ठभूमि
छात्र आंदोलन के बाद से बांग्लादेश में तनाव बना हुआ है। अंतरिम सरकार किसी तरह जोड़-तोड़ करके असंतोष के ज्वार को दबाए हुए थी लेकिन उस्मान हादी की मौत के साथ ही सारे बाँध टूट गए हैं।
एक समय बांग्लादेश भारत का घनिष्ठ पड़ोसी था। कम से कम शेख़ हसीना के कार्यकाल में तो निश्चित ही लेकिन उसके बाद से हालात बदलने लगे। हालांकि कूटनीतिक विश्लेषकों के एक हिस्से का मानना है कि भारत-विरोध का बीजारोपण हसीना के शासनकाल में ही हो चुका था। खैर, वह एक अलग विषय है।
पिछले वर्ष 5 अगस्त को हसीना को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने भारत में शरण ली। इसके बाद से ही दोनों देशों के रिश्ते लगातार गिरावट की ओर जाने लगे। नवंबर में ढाका की अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल ने हसीना को मृत्युदंड सुनाया। इसके तुरंत बाद पूर्व प्रधानमंत्री के प्रत्यर्पण की मांग करते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने नई दिल्ली को पत्र भेजा। लेकिन नई दिल्ली ने इससे इनकार कर दिया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ शब्दों में कहा-“हसीना क्या करेंगी, इसका फैसला वही लेंगी।”
भारत के लिए क्यों चिंताजनक?
कूटनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग कहता है कि बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति भारत के लिए न सिर्फ चिंताजनक है, बल्कि उससे भी कहीं अधिक 1971 के बाद की सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती है। चरमपंथ का उभार, अल्पसंख्यकों पर हमले और भारत-विरोधी रुख-इन सबको देखते हुए यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। इस समय बांग्लादेश में अवामी लीग का राजनीतिक प्रभाव लगभग शून्य है। छात्र-युवाओं का उभार और उसके साथ इस्लामी ताकतों का दबदबा स्थिति को और जटिल बना रहा है।
भारतीय खुफिया एजेंसियों को चौंकाने वाली जानकारियाँ मिली हैं। बताया जा रहा है कि असम के अलगाववादी आतंकी संगठन उल्फा (स्वतंत्र) के प्रमुख परेश बरुआ को ढाका बुलाया गया था। कथित तौर पर उन्होंने जमात-ए-इस्लामी के समर्थक, कट्टर भारत-विरोधी कुछ पूर्व सैन्य अधिकारियों से मुलाकात भी की। इस खबर से केंद्रीय गृह मंत्रालय भी सतर्क हो गया है। तो क्या बांग्लादेश की अंतरिम सरकार भारत में अशांति फैलाने की कोशिश कर रही है?
पिछले सोमवार से ही बांग्लादेश में उथल-पुथल शुरू हो गई थी और इसके केंद्र में था भारत-विरोध। और अधिक स्पष्ट रूप से कहें तो भारत-द्वेष। बांग्लादेश की नेशनल सिटिज़न्स पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख नाहिद इस्लाम ने धमकी भरे लहजे में कहा था-“अगर भारत यह सोचता है कि वह पहले की तरह बांग्लादेश की राजनीति में हस्तक्षेप करेगा और चुनावों में हेरफेर करेगा तो उसे यह भ्रम छोड़ देना चाहिए।” उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता बांग्लादेश पर निर्भर है। उनके सहयोगी हसनात अब्दुल्ला ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा-“ज़रूरत पड़ी तो हम ‘सेवन सिस्टर्स’ को अलग कर देंगे।”
इसके बाद सुरक्षा की कमी का हवाला देते हुए नई दिल्ली ने ढाका में भारतीय वीज़ा केंद्र बंद कर दिया। नई दिल्ली में बांग्लादेश के कार्यवाहक उच्चायुक्त एम. रियाज़ हमीदुल्लाह को भारतीय विदेश मंत्रालय ने तलब किया और उन्हें भारतीय दूतावास की सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार की चिंता से अवगत कराया। गुरुवार रात चटगाँव में भारतीय उप-दूतावास पर भी उग्र भीड़ ने हमला किया। भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा के कार्यालय पर भी हमला हुआ। कूटनीतिक विशेषज्ञ इसे किसी भी तरह से सामान्य घटना नहीं मान रहे हैं।
कूटनीतिक विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
1971 अस्तित्व का सवाल था। मौजूदा स्थिति उससे भी अधिक गहरी है। यह राजनीतिक व्यवस्था के परिवर्तन से जुड़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि नई दिल्ली को पूरे मामले को बेहद संवेदनशीलता के साथ संभालना होगा।