नयी दिल्लीः देश के कुछ न्यायाधीशों में सेवानिवृत्ति के बिल्कुल पहले अवांछित, अस्वीकार्य और अप्रासंगिक फैसले देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ऐसा सुप्रीम कोर्ट का मानना है। बुधवार को मध्य प्रदेश के एक जिला जज के खिलाफ निलंबन पर रोक लगाने की मांग से जुड़ी याचिका की सुनवाई के दौरान देश के मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जयमाल्य बागची ने यह टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा,“मामलाकर्ता सेवानिवृत्ति से ठीक पहले हाथ खोलकर छक्के मार रहा है! यह प्रवृत्ति दुर्भाग्यजनक है। हम इसकी विस्तृत व्याख्या में नहीं जा रहे हैं।”
किस मामले में न्यायमूर्ति कांत और न्यायमूर्ति बागची ने यह टिप्पणी की?: मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजाराम भारतिया का मामला है। उन्हें इसी वर्ष 30 नवंबर को सेवानिवृत्त होना था। लेकिन 19 नवंबर को उन्हें निलंबित कर दिया गया। निलंबन को चुनौती देते हुए और उस पर रोक लगाने की मांग करते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
निलंबन का कारण क्या था?: सूत्रों के अनुसार, मध्य प्रदेश के एक राजनीतिक नेता-जो एक स्टोन क्रशर फर्म के मालिक भी हैं-पर राजस्व चोरी के आरोप में पन्ना के जिला कलेक्टर ने 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। सेवानिवृत्ति से ठीक पहले न्यायाधीश राजाराम ने कलेक्टर के उस आदेश को रद्द कर दिया। इसके बाद न्यायाधीश के आदेश की मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में बारीकी से जांच की गई। हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग ने सर्वसम्मति से उन्हें निलंबित करने का निर्णय लिया। यह फैसला न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति से 11 दिन पहले लिया गया। हालांकि, निलंबन के कारणों का कोई स्पष्ट विवरण हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग ने नहीं दिया।
इसी बीच मध्य प्रदेश सरकार ने अपने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष करने की अधिसूचना जारी की। 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की इस अधिसूचना को मान्यता दे दी। इसके परिणामस्वरूप न्यायाधीश राजाराम की सेवानिवृत्ति की अवधि भी बढ़ गई। अब वे 30 नवंबर 2026 को सेवानिवृत्त होंगे। मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत ने बताया कि जब न्यायाधीश राजाराम ने जुर्माना रद्द करने का फैसला दिया था, तब उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि उनके जैसे सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु एक वर्ष बढ़ा दी गई है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश राजाराम के वकील विपिन सांघी ने दलील दी कि उनके मुवक्किल का सेवा रिकॉर्ड बहुत अच्छा और सराहनीय रहा है। सेवानिवृत्ति से ठीक पहले दिए गए केवल दो फैसलों के कारण उन्हें निलंबित कर दिया गया। वकील ने सवाल किया कि किसी न्यायाधीश को उसके न्यायिक आदेश के लिए कैसे निलंबित किया जा सकता है-विशेष रूप से तब, जब उस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील का प्रावधान मौजूद है और आवश्यकता पड़ने पर उच्च न्यायालय न्यायाधीश के त्रुटिपूर्ण आदेश को सुधार सकता है।
वकील सांघी की दलील सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने कहा कि यह सही है कि किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती और केवल इसी आधार पर उसे निलंबित भी नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर दिया गया फैसला स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण हो, या उस पर गंभीर सवाल उठते हों या वह संदिग्ध प्रतीत होता हो तो फिर क्या किया जाना चाहिए?
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच ने यह सवाल भी उठाया कि न्यायाधीश राजाराम ने निलंबन के फैसले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती देने के बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख क्यों किया।
इस पर उनके वकील ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग ने सर्वसम्मति से निलंबन का निर्णय लिया था। उनके मुवक्किल को लगा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क पर कहा कि हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग के फैसले के खिलाफ वहीं न्यायिक पक्ष के समक्ष आवेदन किया जा सकता था। लेकिन उपलब्ध अवसर होने के बावजूद न्यायाधीश ने ऐसा नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीश के वकील से कहा कि वे निलंबन आदेश को वापस लेने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं। शीर्ष अदालत इस मामले की सुनवाई नहीं करेगी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को चार सप्ताह के भीतर मामले का निपटारा करना होगा।