'उपमुख्यमंत्री' पद पर राजद-कांग्रेस को चुनौती, क्या बिहार में मुस्लिम वोट बांटने की रणनीति बना रहे ओवैसी?

बिहार में 18 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं। अब तक लगभग सारा वोट कांग्रेस या राजद को जाता रहा है। क्या इस बार मुस्लिम वोट बंटेंगे?

By कौशिक भट्टाचार्य, Posted by: श्वेता सिंह

Oct 25, 2025 22:50 IST

यह सवाल सबसे पहले एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने उठाया था। वे बिहार चुनाव महागठबंधन की ओर से लड़ने वाले थे लेकिन सीटों को लेकर रस्साकशी के चलते आखिरकार यह संभव नहीं हो पाया। उन्होंने अकेले लड़ने का फैसला किया। उधर काफी देर के बाद विपक्षी गठबंधन ने आखिरकार तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। ठीक इसी के बाद बाद ओवैसी ने महागठबंधन पर सवाल दागा, 'आपने उपमुख्यमंत्री पद के लिए किसी मुस्लिम उम्मीदवार के नाम की घोषणा क्यों नहीं की?'

बिहार में 18 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं। अब तक लगभग सारा वोट कांग्रेस या राजद को जाता रहा है। क्या इस बार मुस्लिम वोट बंटेंगे? क्या असदुद्दीन मुस्लिम वोटों को बांटने के लिए उपमुख्यमंत्री पद के लिए किसी मुस्लिम उम्मीदवार की तलाश कर रहे हैं?

AIMIM ने बिहार में 32 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। वे मुख्य रूप से उत्तरी बिहार में चुनाव लड़ेंगे। इस क्षेत्र में मुसलमान बहुसंख्यक हैं। स्वाभाविक रूप से यहां की जमीन ओवैसी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बेहद उपजाऊ है। 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने यहां से 5 सीटें जीती थीं। इसलिए कई लोगों का मानना ​​है कि इस बार भी नतीजे उनके पक्ष में ही होंगे। इसलिए उन्होंने मुस्लिम उपमुख्यमंत्री की मांग करके अल्पसंख्यक कार्ड पहले ही खेल दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग ऐसा ही मानता है।

हालांकि महागठबंधन ने अभी तक ओवैसी की मांग पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया है बल्कि आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस और राजद ने उपमुख्यमंत्री पद के लिए मुकेश सहनी के नाम की घोषणा कर दी है। मुकेश निषाद-मल्लाह-सहनी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका वोट शेयर 9 प्रतिशत है। स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि मुस्लिम वोट शेयर ज्यादा होने के बावजूद महागठबंधन मुकेश को उपमुख्यमंत्री बनाने का जोखिम क्यों उठा रहा है? हालांकि तेजस्वी ने शनिवार को कहा कि वह एक मुस्लिम उपमुख्यमंत्री पर विचार करेंगे।

तो क्या यह ओवैसी की राजनीतिक रणनीति है? मुस्लिम समुदाय के वंचना और उपेक्षा के खिलाफ बार-बार उठने वाले गुस्से का इस्तेमाल वह अपनी पार्टी का प्रभाव बढ़ाने के लिए करना चाहते हैं या फिर वह महागठबंधन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं?

हालांकि तेजस्वी ओवैसी की मांगों से कुछ खास प्रभावित नहीं दिखे। क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग कहता है कि तेजस्वी बिहार की राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं। हालांकि AIMIM ने 2020 में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 5 सीटें जीती थीं लेकिन बाद में सभी 4 विधायक राजद में शामिल हो गए। नतीजतन भले ही उसे क्षणिक सफलता मिल जाए लेकिन यह स्पष्ट है कि ओवैसी की पार्टी में लंबे समय तक इसका राजनीतिक लाभ उठाने की समझदारी नहीं है। इसके अलावा अगर मुस्लिम वोट बंटता है तो धर्मनिरपेक्ष गठबंधन कमजोर होता है और भाजपा मजबूत होती है। इसलिए तेजस्वी इस मांग पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं।

बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए 2 चरणों में मतदान होगा। पहला चरण 6 नवंबर को होगा और दूसरा चरण 11 नवंबर को होगा। नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। तभी पता चलेगा कि मुस्लिम वोट किस तरफ जाता है?

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