कांग्रेस के सहारे भी लालटेन न जल सकी, तेजस्वी ने बचायी यादव कुनबे की लाज

तेजस्वी ने एनडीए की आंधी के बावजूद कड़े मुकाबले में किला बचा लिया

By एलिना दत्त, Posted by: श्वेता सिंह

Nov 14, 2025 21:06 IST

आरजेडी कांग्रेस का सहारा लेकर भी बिहार नहीं जीत पाई। SIR की वोट चोरी, कोई भी रणनीति महागठबंधन की हार नहीं टाल सकी। वहीं दूसरी ओर, दिन भर चली रस्साकशी के बाद लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने यादव कुनबे की लाज बचा ली। हैट्रिक बनाने के बावजूद, आरजेडी का यह सेनापति आखिरकार एक दुखद नायक बन गया।

तेजस्वी ने राघोपुर में अपने जनाधार को बचाने के लिए अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी भाजपा के सतीश कुमार यादव को मात्र 11,000 वोटों से हराया। आखिरकार, उनकी जीत ने आरजेडी की लाज तो बचा ही ली, साथ ही यादव कुनबे के किले को भगवा लहर के हाथों में जाने से भी बचा लिया।

आज सुबह का नजारा

बहरहाल, आज सुबह मतपेटियां खुलने के कुछ देर बाद से ही राजद समर्थकों के चेहरों पर सिंदूरी बादल छाने लगे थे। एक तरफ, बिहार भर में महागठबंधन बिखरा हुआ था, वहीं दूसरी तरफ, बीच के कुछ राउंड में जैसे ही प्रतिद्वंदी सतीश कुमार यादव आगे बढ़े, समर्थकों की धड़कनें बढ़ने लगीं। दिन भर की रस्साकशी के बाद, तेजस्वी ने 19 राउंड के बाद धीरे-धीरे अंतर बढ़ाना शुरू किया। तब तक राजद समेत महागठबंधन का भविष्य पूरे राज्य में स्पष्ट हो चुका था।

यादव परिवार का किला बचा

भले ही इस बार उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना दांव पर लगा था, तेजस्वी यादव ने यादव परिवार के खस्ता तालुका राघोपुर से जीत हासिल कर अपनी लाज बचा ली। हालांकि आज बिहार के त्रासद नायक लालू पुत्र हैं। राघोपुर हमेशा से यादव परिवार का गढ़ रहा है।

तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद और माता राबड़ी देवी भी इसी सीट से जीते थे। इसलिए राजद को उम्मीद नहीं थी कि लालू पुत्र को उस सीट पर इतनी कड़ी टक्कर देनी पड़ेगी। हालांकि, भाजपा का प्रतिद्वंदी भी काफी मजबूत उम्मीदवार था। भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर सतीश कुमार यादव को उतारा था जिन्होंने पहले राबड़ी देवी को हराया था। 2010 से 2015 तक यह सीट सतीश के पास रही। लालू प्रसाद ने 2015 में उन्हें हराकर अपनी खोई हुई बादशाहत फिर से स्थापित की। उन्होंने अंत तक अपनी सीट बरकरार रखी।

महागठबंधन की हार

महागठबंधन की लालटेन शुक्रवार को दिन ढलते ही बुझ गई। अंत में जी-जान से लड़ने के बावजूद, गठबंधन के नेता सरकार बदलने में नाकाम रहे। कुल मिलाकर, जानकारों के अनुसार, इस बार बिहार में हवा एनडीए के पक्ष में थी। इसलिए कड़े मुकाबले में गठबंधन के नेता की जीत असल में सिर्फ अपनी इज्जत बचाने तक ही सीमित रही।

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